Book Title: Jugaijinandachariyam Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah Publisher: L D Indology AhmedabadPage 80
________________ सिरिरिसहनाहस्स महाबल-भवो जो जस्स होइ दइओ आयसुहयं स देइ उवएसं । मुह-महुरं परिणामे विरसं पुण वेरिओ देइ ॥४५६॥ संभिण्णसोएण भणियं-"सयंबुद्ध !-- सग्गापवग्गनिरया सुव्वंति य चक्खुसा न दीसंति । विसया पुण पच्चक्खा एगपियाए समप्पंति ॥४५७।। सद्दो महुरो रूवं मणोहरं अमय-सन्निहो अहरो । मुहगंधो य सुयंधो तूल-मिऊ तरुणि-तणु-फासा ॥४५८॥ सयंबुद्धेण भणियं-'महाराय ! मरुभूमीपमएण विसयमायण्यिाहिं नडिएण । अमुणिय-परमत्थेण पयंपियं तुम्ह सचिवेण ॥४५९।। जओ महुमास-महुर-कलयंठिकंठ-निज्जिणण-लद्ध-महिमो वि । कि नरय-पडण-धरणेक्क-पच्चलो पिययमा सहो ।।४६०॥ ईसी-सि-वलंतद्धच्छि-पेच्छियं सुंदरीण सवियारं । रूवं किं हवइ कयाइ रायनिरयग्गि-निव्ववणं ॥४६१॥ कप्पूर-पूर-परिमल-सणाह-तंबोल-गंधरिद्धिल्लो । अहर-रसो वि न नरवर ! ताणं नरए पडताणं ॥४६२।। सार-सिरिखंड-कुंकुम-मय-मय-कप्पूर-पूर-संमिलिओ । विविह-विलेवण-गंधो रागंधो जइ पसंसेइ ॥४६३।। फासो वि हु रमणीयण-मिउ-मणहर-अंग-संग-संजणिओ। परिणामे दुह-जणओ जायइ करवत्त-फासो व्व ॥४६४।। ता विसया विस-विसमा अहव विसाओ वि निदिया पावा। खद्धं मारेइ विसं विसया पुण चितणाओ वि ॥४६५।। दुहिएसु वि जं दुहिओ 'विमणो विमणेसु लज्ज-परिहीणो। वसण-परंपर-नडिओतं विसय-वियंभियं सव्वं ॥४६६।। पेच्छंतो विन पेच्छइ अणवरय-गलंत-छिडु-दुग्गंधं । नारी-देह-महच्चो किमिओ विव असुइ-रस-गिद्धो ॥४६७।। करिणी-विसयासत्तो वणवास-सुहाइं चयइ जह हत्थी। तह मणय-विसय-लुद्धो सुर-सोक्खं हारेइ मूढो ॥४६८।। तिल-तुस-मेत्तेणं चिय सयंभुरमणं च दूर-वित्थिण्णं। नर-सोक्खण हयासो दूरं नासेइ सिव-सोक्खं ॥४६९।। मिउ-दीहर-कसिण-सिरोरुहाओ कण्णंत-पत्त-नेत्ताओ। मुहयंद-सुंदराओ दसणाहर-रेहिरंगीओ ॥४७०॥ पीणुण्णय-पवर-पओहराओ तणु-मज्झ-गुरु-नियंबाओ। रइ-गुण-वियक्खणाओ रंभा-थंभोरु-जुयलाओ ॥४७१।। करि-कर-जंघ-जुयाओ कुम्मुन्नय-चारु-चलण-सोहाओ। न हु होति एत्थ सरणं भवम्मि नरनाह ! महिलाओ ।।४७२।। महिला असच्च-सोया बहु-कवडा सप्पिणि व्व दो-जीहा। कंदर-रहिया वग्घी विसूइया भोयणेण विणा ॥४७३॥ अणवरय-विउस-सेविय-समत्थ-सत्थत्थ-नाय-परमत्थं । सुर-गुरु-सरिसं पुरिसं लच्छि व्व न सेवए महिला ॥४७४।। पढम-रसियाओधणियं अवसाणे जणिय-गरुय-दुक्खाओ। खलमेत्ति-विब्भमाओ नरिंद! परिहरसु महिलाओ ॥४७५।। तियस-धणुं पिव गुण-वज्जियाओ संझ व्व थेव-रागाओ। भद्दिय-तणुं व बहु-नियडि-कवड-कलियाओमहिलाओ॥४७६।। जड-संसग्गि-सुदीहर-भयंग-जण-सेवियं पि नायव्वा । मा सेवसु जुवइजणं नरिंद! अविवेय-कुलभवणं नेह-भरिया वि अइ-निम्मला वि मइलेइ कुलहरं महिला । पेरंत-जणिय-तावा वटुंती दीवय-सिहि व्व ॥४७८।। पाउस-सरियाओ विव कुल-कूलुम्मूलणेक्क-रसियाओ। मोत्तूणमुन्नयजणं नीएसु रमंति महिलाओ ॥४७९॥ इय कुडिल-गमण-बुह-निदियाहिं मयण-विस-वेगवंतीहि । डक्कस्स सुहं कत्तो जुवइ-भुयंगीहिं नरनाह ! ॥४८०।। ते धण्णा ताण नमो पुणो पुणो ताण चेव नमिमोहं । जे जुवईण न वसगा वर-मुणिणो मुणिय-परमत्था ॥४८१॥ इहलोय-सुहं सरिसव-सरिसं सरिऊण सरसु सविसेसं । सुरसेल-समाण-सुहाण साहणं साहुवर-धम्म ॥४८२॥ अह भणसि केण दिट्ठो धम्मो धम्मफलं अहम्मो य । एयं सयलं नरवर! पच्चक्खं दीसए लोए ॥४८३॥ निज्जिय-वम्मह रूवा एक्के दीसंति जण-मणाणंदा। अण्णे विरुव-रूवा उवहसणिज्जा बहुजणस्स ॥४८४।। वरवत्थ-पाण-भोयण-तंबोल-विलेव-रेहिरा एगे। अण्णे जर-दंडी-खंड-निवसणा भोग-परिहीणा ॥४८५॥ १. जं सुहिओ पा./२. णो सुमणेसु पा. ३. गंधे जे./४. वरमुणिएण जे./५. धम्मह जे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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