Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 151
________________ जुगाइजिणिद-चरियं इहल्लुप्फल परियणपिसुणिय सणिहियलग्गपच्छावो । नरनाहवइरसेगो पहाणपुरिसं इमं भणइ ।। ९५० ।। रे ! रे ! अकालहीणं हक्कारह दूरदेसरायाणो । पुरजणवयाण पयsह पाणिग्गहणं कुमारीए ।। ९५१ ।। ते वि तहा काऊणं सच्चं साहिति वइरसेणस्स । सो वि कइदियह मज्झे पउणं काउं ठिओ सव्वं ।। ९५२ ।। अण्णम्मि दिने सुमई समागओ भणइ देवलग्गदिणो । आसण्णो च्चिय वट्टइ कुमरीए पाणिग्गहणट्टा ।।९५३।। तओ विरइज्जंति रंगावलीओ, बज्झति चंदणमालाओ, तडुविज्जति विचित्तवत्थ-विताणया, लंबाविज्जंति मुत्तावलीओ, कीरंति हट्टसोहाओ । समाहरिज्जति तक्कालजोग्गाणि वत्थ-गंध-मल्लालंकार-भक्ख-भोज्ज-पेय-सयणासाईणि । संवच्छरियवयणेण समुचियसमए समादत्ताणि ण्हवणयं भूमीए मंगलाणि काउं नाणाविवणएहिं विरइओ रंगावलीओ, गोरसिद्धत्थएहिं कओ सत्थिओ । गज्जंकुर जवारय-पिहियवयणा सुरहिविमलजलावूरिया विणिम्मिया कंचनकलसा चउसु विदिसासु । तस्स मज्झे धवलदुगुल्लो छाईया, ठविया कलहोय पेढिया, निसण्णा तत्थ पुव्वाभिमुही सिरिमई । धरिया चलणा मणिमयसिला वीढे, निम्मवियं महकम्मं वच्छीपुत्तेण, पाडिओ पेरंतेसु लक्खारसो, कयं मक्खणयं, आसीसमुहलाहिं धरितधवाहि नरिंदकुलबालियाहि । पुणो वि पल्हत्था से उत्तिमंगे गंधोदयप हत्था कंचनकलसा । समाहयाई मंगलतू राई । आबूरिया जमलसंखा । पगीयाई मंगलाई । एवं विहिणा निव्वत्तियाभिसेया पवेसिया भवभंतरस्मि । कारिया णियगोत्तकित्तणाई । अवि य- ११० वरगोत्तिणाय हरिस उच्छलियसेयसलिलेहि । पढमं चिय सा हविया पच्छा पुण कणय-कलसेहिं ।। ९५४ ।। एत्यंतरे विद्द मायंबिरेसु वि नियदईओ वि वसाणुराओ निवडिओ सिरिमईए जावयरसो चलणेसु । तहा नियय कंतिविब्भमेणं कथाओ कुंकुमकेसररसेण सणाहाओ जंधियाओ कणियारकुसुमपिंजरेसु वि पाडिओ कुंकुमरागो उरुयसु । नियतो विव कओ सेसमयणो अहरो नियजसेणं पिव निम्मलेणं उल्लोइयं वयणं चंदणरसेणं । अवि य-चूडामणी विरायइ तिस्सा सीसम्मि तिणयण-ससि व्व । हारो वि हियय-निहिओ गुणकलिओ सहइ दइओ व्व ।। ९५५ ।। अवलंबिऊण कंठं पओहरुच्छंग-संग दुल्ललिओ । उप्फुसइ नीवि-बंधं तिस्सादईय व्व वरहारो ॥ ९५६ ॥ सोहइ कुंडलजुयलं कवोल घोलंत - पडिय - पडिविंवं । पच्चूसपुण्णिमाए दिणयर-ससि - बिबजुयलं च ।। ९५७ ।। वद्धं रसणादामं सुर-सरि - वियडे नियंबदेसम्मि । कव्वं व सुवण्णकयं रक्खाकंडे व मयणस्स ।। ९५८ ।। कसणागरु संकासो रेहड़ तिलओ मओ व्व मुहइंदे | वम्मबाण व्व फुडं मयवट्टा वरकवोलेसु ।। ९५९ ।। पडिमा पडिओ रेes कवोलमूलम्मि चुंबणसयहो । कामि व्व जणियसोक्खो अव्वो कण्णावयंसो से ।। ९६० ।। दठ्ठे पाहणसिरि तिस्सामयरद्धओ विसंभंतो । किं सच्चं चिय एसा होज्ज रई विम्हयं पत्तो ।।९६१ ।। एवं च जाव सिरिमई वियड्ढसहियायणेण पसाहिज्जइ । ताव पेसियं वइरसेणेण वइरजंघकुमारस्स वि हवणयं हविओ वइरसे पिंडविलासिणी- पमुहपरियरेण परमविभूईए नाणाविहकोउयमंगलेहिं कुमारो । दाऊण तासि माहपदाणं, 'वच्चह निययभवणं'ति, भणिऊण काऊण वरवत्थाभरणाइएहिं सारसिंगारं आरुहिऊण मत्तवारणं अणेगनरणाह-भडभोइस मणुगम्माणमग्गो पुरओ पढंतएहि मंगलपाढएहि, समंतओ करि तुरय रहवर - पायक्काणिएण परिवेदिओ समसमाहयतूर-सद्द-भरिय बंभंडमंडलो, उवरि धरियधवल - विरायंतुद्दंडपुंडरीओ, मयरंदुद्दाम - गंधायड्डिय- भमिर भमरोलिमालइ - कुसुम - मालोम्मालिय-कंधराभोगो, विहुव्वंत - सिय- चारुचामरुप्पीलो, पयट्टो नियधवलहराओ वइरजंघकुमारो | तो कमेण आणंदेतो पुरजणं वइरसेग गरिद-धवलहर - दुवारदेसं धरिओ य तत्थ विलासिणीजणेण । दवाविओ आयारिमयंदहि- सिद्धत्यकुसुमसणाहरयणथालहत्थाए, भग्गा से भिउडी रयणमुसलेण अविहवनरिदविलया । fasa ra रणथाले विड्ढविलासिणीए भणियं चणाए सिरिमइए' मुहपिच्छओ' भवसु ईसि हसिऊण भणियं कुमारेण - " अज्जे सिरिमइ ! मुह दंसणत्थं सव्वमेवमारद्धति भणतो संपत्तो विप्पन्नकुसुमोवयारं संपाडियासेस तियसपडिमोवयारं चंदणरसदिणचच्चिक्कयं वरवत्थोवसोहियं घरमंडवं जत्थ चिट्ठइ तिहुयण लच्छि व्व उ कुललच्छि संगया सहियायणसंपरिवुडा सिरिमई । तत्थ विहियमंगलोवयारो काऊण देवयाण पणामं गओ सिरिमईए सह विवाहचरियं । निसण्णो तत्थ पुव्वण्णत्थे पट्टमसूरए कुमारो । कयाई तत्थ वि जहारिहाई मंगलकोऊयाई । पुणो य संपत्ताए वेलाए पाविए लग्गे १. हल्लप्फल पा. । २ हक्कारसू पा । ३ सिद्धत्थय कुसुमोव० जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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