Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 173
________________ १३२ जुगाइजिणिद-चरियं सुरहिवरवारिपडिपुण्णेहि चंदणकयचच्चाएहिं वरकमलपट्टणेहिं आविद्धकंठे गुणेहिं पउप्पलपिहाणेहि करयल सूमाल परिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं रूप्पमयाणं, अट्ठसहस्सेणं, मणिमयाणं अट्ठसहस्सेणं सुवण्णरुपमयाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णमणिमयाणं अट्ठसहस्सेणं रुप्पमणिमयाणं अट्टसहस्सेणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं, अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं अट्ठसहस्सेणं चंदणकलसाणं सव्वोदएहि सव्वमट्टियाहि एवं पुप्फगंध - मल्ल - सव्वोसहि-सिद्धत्थ एहि सव्विड्ढी सव्वजुईए सव्वसमुदएणं महयामहया गीय- निनाएणं महया महया जय जया रवेणं बहिरियबंभंडोदरेणं ददुहिनिनाएणं जमगसमगं सुरवइप महसुरकर पल्हत्थिय अट्ठत्तरकलससहस्सेहि तित्ययरं अभिसिचंति । सेसकलसकोडीओ वि तं चैव अट्टुत्तरं सहस्स मणुपविट्ठाओ भुयणभूसणतित्थयरसिरंसि निवडंति । aणं सामिस्स महया अभिसेयंसि वट्टमाणंसि सव्वे इंदा अप्पेगइया छत्तधरा अप्पेगइया चामरधरा अप्पेगइया कलधारिणो अप्पेगड़या धूवकडुच्छ्रय- पुष्कं गंधहत्थगया अप्पेगईया वज्जपाणी अप्पेगईया सूलपाणी हट्टतुट्ठा पुरओ चिट्ठेति । अने वि य णं देवाय देवीओ य अगईया गायंति, अप्पेगईया वायंति अप्पेगईया नच्वंति अप्पेगईया बत्तीस इविहं दिव्त्रं नट्टविहि उवदंसेंति, अव्येगईया उप्पयंति, अप्पेगईया निवयंति अप्पेगईया हिरण्णहि वासं वासेंति, एवं सुवण्णरयण वर आभरण-पत-पुष्प-फल- त्रीय-मल्ल-गंध-वण्ण-चुण्णवास वासंति । अप्पेगइया हिरण्णविहि भायंति, एवं जाव चुणविहि भायंति । अप्पेगईया वग्गंति अप्पेगईया सीहनायं नंदंति अप्पेगईया हयहेसियं करिति अप्पेगईया गयगुलुगुलाइयं रति अप्पेगइया रहति, घणाइयं करेंघण अप्पेगइया तिण्णि वि करिति, अप्पेगइया पायदद्दरेण सुरा चलसिरि चलयंति, अप्पेगइया भूमि चवेाहिं दलयंति अप्पेगईया महया महया सद्देणं हलवोलं करेंति, अप्पेगइया पुरओ सरंति अप्पेगईया पच्छओ चलति अप्पेगईया रासयं गायंता चक्कवालं विरयंति । अप्पेगईया विरईयविरूवरूवा जणं हासेंति अप्पेगईया जति अप्पेगईया, तवंति अप्पेगईया गज्जंति, अप्पेगईया विज्जुयायंति, अप्पेगईया वासं वासंति । तणं सामीदेविदे सपरिवारे महया, महया अभिसेएणं अच्चुए अभिसिचंति अभिसिंचिता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं अंजलि एकट्टु जणं विएणं सामि वद्धावेइ वद्धावेत्ता जय जय स पउंजइ, परंजित्ता पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाइयाए गायाई लहेइ लूहित्ता भत्तिभरनिभरो नट्टविहं उवदंसेइ उवदंसित्ता अच्छेहि अखंडेहि रययामएहि तंदुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अमंगलगे आलिहइ तं जहा -- पण भद्दास वद्धमाण वर-कलस-मच्छ-सिरिवच्छा । सत्थिय-नंदावत्ता लिहिया अठ्ठट्ठ मंगलगा ।। ११५३ । ओ मंगलगे आलियि विहियवरविलेवणो सुरतरुपमुहपहाणपायव- कुसुमेहिं जलथलसंभवपहाणपउमेहि पूर्वऊण भगवंतं सुगंधगंधियस्स कयग्गाहगहियकरतलविमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनियरस्स जाणुस्सेहपमाणं मोत्तूण पुप्फपयरं चंदप्पहरयणवइरवेरुलियविमलदंडं, कंचण-मणि-रयण भत्तिचित्तं कालागुरुपवर- कुंदुरुक्क तुरुक्क कप्पूर- पूरपरिमल- बहलधूमविहिं विणिम्यतं वेरुलियमयं कडच्छुगं गहाय घंटारवबहिरियदियंतरं पयओ धूवमुग्गाहिऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठपयाई सरिता दसंगुलियं अंजलि करियमत्थयम्मि पयओ एवं थुणिउमाढत्तो । नानातीर्थसमाहृतमलजलं सद्गंधगंधोध्दुरं, ' सानंदामरसुंदरीकलगिरा संगीतसन्मंगलम् । रम्यं रञ्जितसज्जनं मलहरं पुण्यं जगत्यार्चनं,' क्षोणीमंडलमंडनस्य भवतो भूयात् मुदे मज्जनम् ।।१।। क्षीरोदक्षालिताद्रिधू. ' तकलशमुखोन्मुक्तमुक्ताफलांभो-, * धाराभिः शुभ्रिताशः सकलसुरगणै रुन्मुखं वक्ष्यमाणः । सोत्कण्ठयं चारणाढयैर्जयरवमुखरैः साधुभिः साधुदृष्टः पुण्यप्राग्भारलभ्यो भवतु भवभिदे जैनजन्माभिषेकः ||२|| पाता सर्वजनस्य जंतुकृपया कर्ता स्थितीनां स्वयं, माता स्थावरजंगमस्य जगतो भूतेशभर्त्तर्भुवः । धाताद्धर्मधुरो प्रमेयमहिमन् दातामहासंपदा, नाभेयः प्रविलोकयाशु सदयं मा मा विलंबं कृथाः ॥३॥ १. भ्रातः जे० । २. दद्वित० पा० । १. सद्भूतगंधो पा० । २. त्याचनम् जे० । ३ दूत पा० । ४ फलंभो पा० । ५. क्षपया (क्षमया ) जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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