Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 131
________________ जुगाइजिणिंद-चरियं दुल्ललिओ महुमासो। जत्थ य मंजरिज्जति सहयारा, फुल्लंति अंकोल्ला, विरायंति रत्तासोया, फुल्लंति किंसुयगणा, विसद्वृति कुज्जया, रेहंति कंचणारा, छज्जति चंपया, सहति माहवीलया मंडवा, महमहंति वरपाडलाओ, फुल्लंति वणराईयाओ, वियसंति किंकिअरायवल्लिओ' गाइज्जति चच्चरीओ, वाइज्जति पडहियाओ, पिज्जति सुरहिमइराओ, बहु मन्निज्जति दुईयाओ, संठविज्जति सहियाओ, निबज्झंति कुसुममालियाओ, कीरंति मयरद्धयपूयाओ, आउली भवंति पउत्थवइयाओ, आणंदिज्जति२ साहीण पिययमाओ, नियत्थिज्जंति णवरंगयाई, णचंति तरुणि३ वरमिहणयाई, कुलकुलंति कलकंठियाओ, णियत्तंति पहियजणवंद्राई, उव्विज्जति कुसुमकेसराई, पयणुई भवंति माणिणी माणमहणाइं४ । अवि य बहुकुसुम-सुरहि-परिमल-मयरंदुद्दामवासियदियंतो । दाहिणपवणो कुसुमाउहो व्व माणं पणासेइ ॥८५९।। माणं तरुभंगपवणो५ गयवइया हिययगूढगुरुपहरो । माहव-रिंद-पडहो वियंभिओ परहुया सहो ।।८६०।। विणिवाइयसिसिरमहागइंदवियलंतरूहिर-विच्छुरिया महुकेसरि-णक्खा विव, किंसुय-थवया विरायंति ॥८६१।। मोत्तूण पंकयाइं भसला धावंति माहवी गहणे । अहवा वि चलसहावा, एगत्थ दिढेि न बंधति ॥८६२।। मलयानिल-फंसुच्छलियबहलरोमंच-पुलइयंगाण । माणेण समं गलिओ, णीवीबंधो वि विलयाण ।।८६३।। अल्लियइ चूयसिहरं मयरंदुद्दाम-सुरहि-गंधड्ढं । अवहत्थिय-तरुवरगहण-कुसुम-भसलो वसंतम्मि ॥८६४।। णवबहुवेससरिच्छा असोगतरुणो हसंति सव्वत्थ । मयणसिलीमुहदारिय पंथिय-हिययाइं व पलासा ।।८६५।। चूयचलपल्लवुवेल्लं गोंठिपरिसंठियालिपब्भारो । सहइ विरहग्गितावियहिययसमुच्छलियधूमो व्व ॥८६६।। दाहिण-पवणो पसरइ चूओ महमहइ परहुया रसइ । पूइज्जइ पंचसरो वसंतमासे वियंभंते ॥८६७।। तओ ते परोप्परं संलवमाणा वसंतोस्सवविविहपेक्खणय-कोउहलासत्तमाणसा, वियरमाणा संपत्ता मयरद्धयमंदिरं पिव महि-महिला-भाल-तिलयं पिव गंधसमिद्धाभिहाणमुज्जाणं'त्ति । जं च-णच्चइ व पवणालिद्ध-ककेल्लिपल्लवग्गहत्थेहि, विरावेइ व कणिर-कलयंठिमणहर-सह-पलावेहि, गायइ व उब्भड-मयरंदायढिय-भमिर-भमरोलिमणहर-पक्खोवलि-झंकारणिहाएहि, हसइ व विसÉकुसुमट्टहास-णिउरबेहि, धूमायइ व पवण-पहोलिरमायंद-कुसुम-मयरंदायड्ढिय-भमिर-भमरोलिणिहाएहि, जलइ व णवकुसुम-पल्लवसंघाएहि, रसइ व णाणाविहविग-पलावेहिं, थुणइ व कणइल्ल-सारिया फुडक्खरालावजयजयारावेहिं, पणमइ व पवण-पहोलिर-विणमंत-तुंग-तरु-सिहर-संघाएहि, उप्पयइ व मारुय-दूरुच्छलिय-उद्ध-पहोलिर-धयवडसंघाएहि ति । अविय -- संथुणइ पढइ गायइ णच्चइ परिहसइ जयजयावेइ। भरह-सुयवरियसरिय ते पत्ता दो वि. उज्जाणं ।।८६८।। जत्थ य सुय-सारिया-रवमुहलो दक्खालयमंडवो, अहिणव-वरो विव आरत्त-पल्लव-णिवसणोवसोहिओ कंकेल्लि-तरुणियरो, चडुल-कलहंससंचालिओ उब्भड-गंधायडिढय-भमंत-महल-भमरोलि-सेविय-सरस-ताम-रसोवसोहिय-दीहियाकमलसंडो, मुहल-कलयंठिकलयलाराव-हल-बोलमुहलो, कामिणीभुयलयालिंगिय-तरुणजणो व्व णागवल्ली समावेढियपूगीफलीपायव-समूहो। अवि य-- उब्भड-चूय रुक्ख-मलयानिलवासिय-सयलभुवणए । कोइलकणिर-सद्दणिहारिय-पंथिय-रमणि-हियडए ।।८६९।। बउलासोय-गंध-पवियंभिय-दीविय पंचबाणए । कुसुमामोयभरिय भमरावलिमहरिय' सिंदुवारए ।।८७०॥ इय ते दोन्नि वि मित्ता पत्ता उज्जाणयम्मि रम्मम्मि? अन्नोन्न पीइजुत्ता भममाणा तक्खणमहसवम्मि ।।८७१॥ एवं च कमेण वच्चमाणेहि सुंदर-जिणमुहेहि दिवा उज्जाणाभोगमज्झपरिसंठियस्स असोगतरुणो हेटुट्ठिया सहियायण-परिवुडा रायहंसि व्व धयरट्रयाण सहयारमंजरि व्व सेसमंजरीण मज्झ ठिया मयरद्ध-पूया-वावडा का वि कण्णया। १. किंकिरयावलीओ २. आणविज्जति प.० । ३. तरुण मा० । ४. माणगहणा० पा० । ५. भंगमास्य गय पा। ६. सहति पा० । ७. धूय जे०। ८. भमिर जे. । ९. महलिय पा०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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