Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 56
________________ सीले सीलधणाउदाहरणं सोऊण इमं वयणं उवसंता तीय कयनमोक्कारा । मयवइ-महिसा सिग्घं जहागयं पडिगया दो वि ।२०।। अण्णम्मि दिणे महाभेरवीए अडवीए हिंडमाणीए । दिट्ठा अक्खरपंती सिलाए सेडीए संलिहिया ॥२०१॥ जइ सच्चं सीलधणा अहं पि जइ वल्लहो तुह मयच्छि ! ता सीलं सीलेज्जह मारिज्ज मा मह विओगम्मि ।।२०२।। अणुकूलविहिवसेणं जीवंताणं समागमो होइ । पि हु कम्माणं सुंदरि! मयाण भिण्णा गई चेव ॥२०३।। जीवइ पिओ पहिट्ठा सीलं सीलेज्ज तेण पुण रुट्ठा' । किं जीविएण संपइ संकियसीलाए दएइण ॥२०४।। अहवा दिठे मणवल्लहम्मि लहिऊण माणस तस्स । सुवियारिवयणत्था जं जुत्तं तं करिस्सामि ॥२०५।। पुचि न तहा दुक्खं जह दुक्खं अक्खरेहिं दिळेंहिं। अहवा दुक्खियदेहे के दुक्खं जं न संकमइ ॥२०६।। नयणुज्झरा झरंता निरंतरा बाहबिंदु संदोहा। मुत्ताहलहारो विव तीसे हिययम्मि घोलिंति ॥२०७।। पियमोहमोहियमणा पुणो पुणो अक्खराणि वच्चंती। ताव ठिया जाव गओ अत्थगिरिसिरम्मि दिणनाहो ॥२०८।। छुहिया भएण खुहिया पिवासिया तम्मि चेव सिलवठे। पियलिहियक्खरसुहए सुत्ता सरिऊण नवकारं ॥२०९॥ एत्यंतरे दवग्गी पुवावरदाहिणुत्तराहितो। तणकट्टाणि दहंतो पत्तो तीसे समीवम्मि ॥२१०।। सहस ति उदिऊणं सीलधणाए पयंपियं वयणं । महसीलसलिलसित्तो पसमउ एसो वणदवग्गी ॥२११।। तव्वयणाणंतरमेव झत्ति दावानलो खयं पत्तो। गलिया रयणी तुरियं तरणी उदयाचले चडिओ ॥२१२।। फुसिऊण अक्खराइं अंसुपवाहेण दाहिणकरेण । सच्चविय दिसायक्का विगयवियक्का विवण्णमुही ।।२१३।। उट्टिय सिलायलाओ सोयं काऊण सरियमलिलेण । कयकंद-फलाहारा चलिया सुण्णेण रण्णेण ॥२१४।। मग्गं अयाणमाणा दिसाविभागपरिमोहियमईया। हरिणि व्ध जह-भद्रा इओ तओ भमइ कंतारे ॥२१५।। एत्थंतरे निज्जियतियसिंदगइंदमाहप्पो, महापुरिसो व्व अणवरयपयट्टदाणोल्लियकरो, विझगिरिवरो विव अइकसिणतुंगकाओ, कालनिसासमओ विव अइभीसणो, सरयसमओ विव कोमलारुणपोक्खरग्गो, सुकविकहाबंधो विव उद्दामपयसंचारो, रायहंसो विव माणसगई, सूरो विव दुसहपयावो, कालवदंडो विव सुविसुद्धवंसो, पाउसमेहो विव जलमय जलधारा-निवहसंसितमहीमंडलो, गहिरं गुलगलितो अभिमुहमागच्छंतो दिट्ठो वणकुंजरो। उब्भियवर थोरकरो सरलो मयविठभलो महाकाओ'। तड़वियसवणजयलो कयंतमत्ति व्व दुप्पेच्छो ॥२१६॥ वियडंतर विसालं सीलधणा मंडलं पकाऊण । मज्झ ठिया भणइ करि सीलवई मा विलंघेसु ॥२१७॥ परियंचिऊण सुइरं मंडलपासेसु खिण्ण सव्वंगो। विगयमओ उवसंतो गओ गओ तीए नमिऊण ॥२१८।। करिसंभमउम्मुक्का चलिया सुण्णेण अडविमग्गेण । सीलसहाया सरला सीलधणा नं वणसिरि व्व ॥२१९॥ अण्णम्मि पएसे वच्चमाणी जमभडसमाणरूवेहिं, वल्लीवियाणुद्धबद्धमद्धएहिं, पुरियकोडंड-कंड-हत्थेहि, सजलजलधरकालवण्णेहिं, गुंजद्धरत्तलोयणेहि, लोद्धि कुणंतेहिं दिवा दोहिं भिल्लाहिवपुरिसेहि, 'एसा मह, एसा मह' त्ति पयंपिरेहि समग चेव गहिया वामदाहिणकरेहिं । परोप्परं विवयमाणा जुज्झिऊण दो वि मया। ताहे तेसिं हत्थाओ फिडिया समाणी एगागिणी कंदमाणी दिट्ठा एगत्थ पएसे अचिरसिद्धविज्जेण कामंकुरविज्जाहरेण । पुच्छिया तेण"सुंदरि ! का सि तुमं? पायालकण्णगा वा? सग्गाओ सावभट्टा सुरसंदरी वा? वणदेवया वा वणलच्छि दट्ठभागया ? माणुमीसु वा विज्जाहरीसु वा असंभवो एरिसरूवाइगुणगणस्स।" तीए भणियं-"महाभाग ! माणुसी सत्था उप्फिडिया पहपब्भट्टा वसणाभिभूया एगागिणी सुण्णारगणे परिभमामि, ता सरणागयाए निय भगिणीए दंसेहि मे किमवि वसिमं । कामंकुरेण भणियं--"सुंदरि ! ममम्मि साहीणे सव्वं ते. हियइच्छियं करगयं नेव, परं भइणि ति न भाणियव्वं, अहं हि गयणवल्लहपुरनिवासिणो गयणमेहविज्जाहरस्स पुत्तो कामंकूरो नाम तुहंगसंगमसमस्सूओ, ता नियंगसंगमसलिलेण मयणानलसंतत्तं निव्ववेस् मे माणसं'। सीलधणाए भणियं--"कयमिमाए उत्तमजनिदियाए संकहाए। जओ-- दहइ पियविप्पओगो दहइ अणाहत्तणं परविएसे। दहइ य अभक्खाणं दहइ अकिच्चं कयं पच्छा ।।२२०।। कुललंछणं महायस! काउरिसनिसेवियं गरहणिज्जं। तूज्झ वि न चेव जुत्तं काउं एयारिस कम्मं ॥२२१।। तेण भणियं-- १. ण सिट्ठा पा. । २. मयभिंभ० पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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