Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 69
________________ ----- जुगाइजिणिद-चरियं ... माणुम्मूलणरसिओ वडिढयमयणानलो हु जुवईणं । महुमयकज साहइ अणुरागो तम्मि'नयरम्मि ॥३३॥ मइरामयपाडलसूरहिगंधपसरंतसासनालिल्लं। कामिणिवयणं भसला पंकयसंकाए अहिलिंति ... ॥३३२।। .. तत्थेक्को च्चिय दोसो दीवो वि न दिज्जई जं घरेसु । अच्चुब्भडबहुविहरयणकिरणनिद्दलियतिमिरेसु ॥३३३॥ . . तम्मि य दप्पूद्धर'पयंडपडिवक्खमत्तमायंगकुंभत्थलाभोगनिद्दलणपच्चलो, नरिंदलच्छीसमालिंगियवच्छत्थलाभोगो, अयमस्थिजणविलप्पमाणधणो वि अक्खीणकोसो, नीसेसनरनाहुत्तमंगमणि-मउडकिरणावलिविराइयपायपंकओ कसमदेखो नाम महारिदो। तस्स 'य' राहणो सयलंतेउरपहाणा गोरी विव तिउरारिणो कित्तिमईनाम महादेवी। अवि य-- नंदस्स दवरिद्धि ब्व सुयसमिद्धि ब्व सगरनरवणो। जालावलि व्व जलणर ससा सरिद्धि व्व सरयस्स ॥३३४॥ सहन्नयस्स सहावलि व्व सीय व्व दसरहसुयस्स। मंदोदरि व्व रक्खाहिवस्स जोण्ह व्व चंदस्स ॥३३५॥ अह तस्स तीय समयं विसयसुहासत्तखित्तचित्तस्स । सग्गे व तियसवइणो वोलीणो दीहरो कालो ॥३३६।। अण्णम्मि दिणे कित्तिमईए संभओ गम्भो। तइयमासे दोहलयसमए सुहपसुत्ता रयणीए चउगइदुहाणि सुमिणे दळूण भयवेविरंगी पडिबुद्धा देवी। साहिओ कुसुमसेहरराइणो सुमिणओ। तेण भणियं--"देवि ! भवभीरओ ते पत्तो भविस्सई ।” तं सुणिय सा सुहं-सुहेण गब्भमुव्वहइ । अह मासाण नवण्हं दिणाण अद्धट्ठमाण खलु जाओ। सुकुमालपाणि-पाओ तियसकुमारो व से 'तणओ ।।३३७।। कयं महावद्धावणयं, पूइओ नगरलोओ, सम्माणिओ बंधुवग्गो, कयत्थीकओ परियणो, संपत्ते दुवालसमे दिवसे मिणयदसणाणुसारेण पट्टावियं से नाम भवभीर त्ति । एवं च कलाकलावेण देहोवचएण य वढंतो, संपत्तो जोव्वणं, संजायं कुमइणीपमुहमंतेउरं, उचियसमए कओ पिउणा रज्जाभिसेओ, जाओ नराहिवो। कुसुमसेहरो वि पच्चपरिसनिसेवियं भवभीरुराइणाणुण्णाओ गओ वणवासं । इयरो वि अच्चंताणुरत्तकुमुइणीपमुह अंतेउरेण सह विसयसुहमणुहवंतो कालं गमेड। एवं च ताव एवं। इओय वेयड्ढ दाहिणसेढिसंठियगयणवल्लहनयराओपवणगई नाम विज्जाहरो सह मियंकलेहाए भारियाए पयट्रो नंदीसरं नाम दीवं । नाणाविहनग-नगराइसंकुलं पुहईमंडलमवलोइन्तो संपत्तो गयपुरस्सुवरि । एत्यंतरे पणयकोवकुवियपरम्महिं कुमुइणीमणुणितो दिट्ठो चंदलेहाए भवभीरू । तओ तं पुलोइऊण नियनिंदागब्भिणं ३ सविसायं भणियं चंदलेहाए"अज्जउत्त! धण्णा खु का वि एसा धरणिगोयरी जा एवं चलणनिवडिएण पुणरुत्तं पइणा पसा (इ)ज्जइ। एय १४ पुलोईओ राया। दिट्ठमेत्तेण चेव जाओ से मणपरिओसो । चितियं च णेण-"अब्बो ! जह एस दीसंतो नयणाणंदं जणेइ तहा तक्केमि पुचभवपडिबद्धेणं बंधुणा होयव्वं ति। अवि य-- नयणाई नूण जाईसराई वियसंति वल्लहं दटुं। कमलाई व रविकरबोहियाइं मउलिति इयरम्मि ॥३३८।। ता कि से पियबंधवाणुरूवं करेमि? अहवा कि सेसेहि तडिल्लया विलसियं पिव चंचलेहि अत्थकामेहि मोक्ख निबंधणं सयलसुहकारणं उवइसामि सच्चं सम्मत्तमूलं चरित्तधम्म' ति चितंतो अवयरिओ गयणाओ नरिंदभवणं। अवि य-- अह दठ्ठण नरिदं पीइविस,तलोयणो खयरो। गयणाओ अयवरिओ सग्गाओ तियसनाहो व्य ।।३३९।। अब्भुट्टिओ नरिंदो सहसा दट्टण दसदिसिपयासं । नियकंतिभरियभुवणं तं खयर भणइ उवविससु ॥३४०।। को सि तुम? कत्तो वा इहागओ? केण कारणेणं वा? । एयं सव्वं सुपुरिस! जइ कहणिज्जं मह कहेसु ॥३४१।। दिठे तुमम्मि वियसंति लोयणा हरिसपरवसं चित्तं । धणेहिं तुम दीससि पच्चक्खो पुण्णरासि व्व ॥३४२॥ १. जम्मि पा.। २. अहिलसंति पा.। ३. पुद्ध र.पा.। ४. सीस जे.। ५. स्सइ इमं सु. पा.। ६. वसो त. जे.। ७. ते दसमे पा.। ८. पइट्टियं पा । ९. संपत्तोजोव्वणारंभं पा । १०. उत्तरसे दि. पा./११.ठियरहनेउरचक्कवाल नय पा. । १२. लोएंतो पा १३. गम्भा पा. । १४. पलोइ. जे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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