Book Title: Jugaijinandachariyam Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah Publisher: L D Indology AhmedabadPage 65
________________ २४ जुगाइजिणिद-चरियं 'संपयं का गई ?' सो विन भाइयव्यं' ति भणंतो पुवनिव्वत्तियं गोवि ( . . . . 'समा रुहिऊण गहियतिसूल-डमरुओ गयणंगणं गओ तज्जिया रायाणो। महिंदसीहेण भणियं-"न भे भाइयव्वं इंदयाल खु एयं।" एत्थंतरे मंदराओ पडिनियत्तेण हिमवंतं पयपत्थिएण गोरीभारियाए महिएण कणयमुहविज्जाहरेण नहयलगओ वसहमारुढो दिट्ठो कुमारो । तप्पुन्नचोइएण भणियं खयरेण-"वयंस को एस वइयरो?" कुमारेण वि साहिओ सवित्थरो सव्वो वि नियवुत्तंतो। तओ तेण परोवयाररसियमाणसेण सुमरिया बहुरूविणी विज्जा। समागया य भणियमणाए-"भण, कि करेमि?" खयरेण भणियं-"भयवइ ! मह वयंसस्स रूवाणुरूवं गहियपहरणं चंडिया पमुहपरिवारं पयडेसु।" तीय वि तहेव कयं । तओ तक्खणा चेव खंधपहो तं कविलकेसरसढा, भासुरकुंदिंदुसंकासदाढाकरालवयणा, सीहकिसोरारूढा, कोहवसवेविरसरीरा, पलयकालकंकाल-रूव धारिणी, नाणाविहभूयगणसमाउला समागया कोट्टइरी। साणवाहणा विवसणा करकयकरालडमरुया, उल्लालिय गरुयगया पहरणा, उद्धबद्धकसिण केससंचया, अट्टहासपहसिरा, हुंकाररव-वित्तासियकारयजणा, घोरघग्घरारावबहिरियसवणंतरा, विरइयवीरवेसा, वियडपक्खेव सभक्कंतमहीमंडला, सरसरस्स समागया खेत्तवाला । कज्जलकसिणकाएहि, भयविम्हयावूरिज्जमाणमाणसेहि, समंतओ मिलिएहिं भीसणदसणेहि, नाणाविहपहरणकरेहि, पूरियं नहंगणं निसायरेहिं । पुणो य दूरुनयवियडप्फडाडोपमणिकिरणनियरमुसुमरियतमंधयारा, फारफुकारानिलसंखोहियधरणिमंडला, पायालवासिणो संपत्ता महाभोइणो । पुणो वि किलिकिलेंतनच्चिरभूयसयसहस्ससंकुलाओ फेक्काररवाऊरियगयणंगणाभोगाओ समागयाओ मायरो। तओ डमरुयडमडमारावुड्डभरियबंभंडभंडोयरो, तिहुयणजणबहरियसवणंतरो, पडिसद्दभरियगिरिकंदरो, समरसमारंभरुद्दरुवरुदेणेव । पुणरवि पवाइओ खेत्तवालेहिं डमरुओ, डमरुयसहसवणाणंतरमेव पणच्चिया नहयले भूय-पिसायाजक्ख-रक्खसगणा, वामकरकयनरकवालभीसणाओ, दाहिणकरुल्लालियरविकरसंवलियकरालकत्तिया, पहरणाओ मुहकुहरविणिस्सरंतजलणजालोलि कविसीकयंगवराओ मुक्कलकविलकेसपासभीसणसणाओ किलकिलारवं करेमाणीओ पणच्चियाओ जोगिणीओ। हा "किमेयं" ति पकंपियं तिहुयणं । तओ तं तहाविहं विड्डरं समवलोइऊण भयभरियमाणसा मच्छिया इव महत्तमेत्तमच्छिऊण लद्धचेयणा दुन्विणयखामणत्थं अग्धं दाऊण कयंजलिणो एवमणिसु नराहिवा-"भो महाभाग ! देवो वा दाणवो वा विज्जाहरो वा तयणुग्गहविफुरंतअचिंतसत्तिजुत्तो भूमिगोयरो वा तुम, ता खमाहि जमवरद्धमम्हेहिं । तओ संहरिय समरसमारंभेण भणिया ते कुमरेण-'गच्छह, मा पुणो वि एवं करेज्जह। ते वितं सुणिय भयभुत्तलोयणा तक्खणा चेव पलाणा खयरो' . . . . ) नहयलगओ जाव चिइ ता सहसा जम्मंतरनिन्वत्तियसुकयचोइओ संतो। दक्खिणदिसाओ सह पिययमाए खयरो समावडिओ॥२९८॥ दळूण तयं खयरं हरिसवसविसप्पमाणहियएण । वियसियलोयणजुयलेण जंपियं देवदिन्नण ॥२९९।। को सि तुमं? कत्तो वा? बंधू वा मज्झ पवरमित्तो वा? जेण तुह दंसणेण वि अउव्वतोसो महं जाओ को को जायम्मि न मिलइ केण समाणं न हुँति उल्लावा । जं पुण हिययाणंदं जणेइ तं माणुसं विरलं ॥३०१॥ तं सुणिय भणइ खयरो बाहजलं लोयणेहिं मुंचंतो। सुण सावहाणहियओ जो हं तुह आसि पुन्वभवे ॥३०२।। महसुक्के सक्कसमो महिड्ढिओ सुरवरो तुममहेसि । गीयरई नट्टरई सुरसुंदरिविहिय परिवेढो ॥३०३।। अहयं पितुह वयंसो समसुहसुहिओ सया वि सन्निहिओ । महसुक्ककप्पवासी सूरप्पहो नाम नामेण ॥३०४।। तब्भवसंवढियनेहतंतुसंदाणिया समं चेव । सुरसेलपमुहसंदरठाणेसु सयावि कीलामो ॥३०५॥ अन्नम्मि दिणे पगलियतेओ मिलायमाणवरकुसुमो। विच्छायसयलदेहो विडप्पगहिओ ससहरो व्व ॥३०६।। दिट्ठो मए तुम तह पुट्ठो कि मित्त ! दुक्खिओ एवं । भणियं तए सदुक्खं नं नज्जइ चवणसमओ त्ति ॥३०७।। एवं पयंपमाणो पयंडपवणोल्लिओ पईवो व्व । सहस च्चिय अत्थमिओ दिणावसाणे दिणयरो व्व ॥३०८।। देवाण चवणकाले जं दुक्खं होइ तं अणक्खेयं । तद्द क्खदुक्खियमणा न मरंतअमर त्ति काऊण ॥३०९।। कइवयदिणावसाणे अहं पि चविऊण मित्त ! संजाओ। दाहिणसेढि-पइट्ठियकमलमुहे पुरवरे रम्मे ॥३१०।। कमलालय-कमलसिरीण नंदणो सिद्धसयलवरविज्जो। दइयाए समं पत्तो कीलंतो विविहकीलाहि ॥३११॥ अवरविदेहे वासे सलिलावइविजयबीयसोगाए। नयरीए पमयवणे विमलपहो केवली दिट्ठो ॥३१२।। १ पा. प्रतौ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,Page Navigation
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