Book Title: Jindutta Kathanakam
Author(s): Omkarshreeji
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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प्रस्तावना
एक दिवस औदत्त शेठ, व्यापार करवा माटे सिंहलद्वीप जवानो निर्णय करे छे । तेनी साथे जिनदत्त जाय छे। अने सिंहलद्वीप पहांचे छे ।
आ दिवसोमा सिंहलद्वीपना राजा घनवाहननी श्रीमती नामनी पुत्रीने कर्मदेाषथी विचित्र व्याधि थयेलो छे, तेथी तेनी पासे रात्रीए सुनार माणसनुं मृत्यु थाय छे। आथी राजाए नगरमांथी वारा प्रमाणे प्रतिदिन एक माणसने राजकन्या पासे सुवानी आज्ञा करेली छे ।
सिंहलद्वीपमा पछांचीने नजीकमां एक जिनमंदिर जोतां, जिनदत्त एक माळीना घरे फूल लेवा माटे जाय छे । ते घरमां एक वृद्धाने रुदन करती जोईने जिनदतो तेने रोवानुं कारण पूछधुं त्यारे वृद्धाए कयुं के 'आज मारा पुत्रने, राजाज्ञाने अनुसरीने राजकन्या पासे रात्रे सुवा माटे जवानुं छे, अने त्यां तेनुं मृत्यु थशे, मारे - मात्र एक ज पुत्र छे' आ कारणथी हु रहुं छु' । 'तारा पुत्रना बदले हु जईश' एम कहीने जिनदत्ते वृद्धाने चिंतामुक्त करी ।
फूल लईने जिनमंदिरमां पूजा करीने जिनदत्त वृद्धाना घरे आवे छे । समय थतां आवेला राजपुरुषोनी साथे जिनदत्त राजकन्याना आवासमां जाय छे ।
'मारा कारणे आवा सुंदर पुरुष मृत्यु न थवु जोइए' ए आशयथी राजकुमारी, जिनदत्तने अन्य स्थळे जवा माटे सूचन करे छे । आम छतां जिनदत्त राजकुमारी साथे वार्तालाप करीने समय वीतावे छे । दरम्यानमां राजकुमारी निद्राधीन थाय छे ।
जिनदत्त, पूर्वना दिवसे मरेला माणसनुं मडदु लावीने तेने पोतानी पथारीमां वस्त्रथी ढांकीने सुवाडे छे, अने पोते सावधान थईने हाथमां खड्ग राखीने छुपाय छे । थोडा समय पछी राजकन्याना मुखमांथी धीमे धीमे नीकळीने एक मोटो सर्प, पथारीमा खुवाडेला मृतकने डसीने फरी पाछो राजकन्याना मुखमां जवानी तैयारी करतो हतो ते समये जिनदत्ते सर्पने पडकार्यो । आथी सर्प जिनदत्तनी तरफ आवतो हतो ते वखते ज जिनदत्ते चपळताथी पूंछडी पकडीने तेने बहु बळ अने वेगथी खूब ज घूमाध्यो जेथी सर्पना गळामां आंतरडां आ गयां अने ते निर्बल थई गयो । आथी दयावश जिनदो तेने नानी कूईमां नांखी दीधा ।
वहेली सवारे जागेली राजकुमारीए जिनदत्तने का - कुमार ! एक तो मारु पेट बिलकुल हळवु थयुं छे अने बीजुं तु जीवे छे, आ बे वातथी मने खूब ज आश्चर्य थयुं छे, तो आनुं कारण जणाव । जिनदो रात्रीनी हकीकत जणाव्या पछी राजकुमारीए जिनदत्तनी साथे लग्न करवानो निश्चय कर्यो ।
नियम प्रमाणे सवारे मृतक लेवा आवनार माणसे जिनदत्त अने राजकन्याने शतरंज रमतां जोईने 'गत रात्रीनो प्राहरिक जीवे छे' एवी वधामणी राजाने आपी । राजाए तेने इनाममां सोनानी जीभ आपी ।
राणी अने प्रधानोनी साथे आवीने राजाए श्रीमतीने खोळामां लईने जाण । त्यार पछी प्रधानोनी साथ परामर्श करीने श्रीमती अने जिनदत्तनुं अने धन श्रीमतीने दायजामां आप्यु । जिनदत्त त्यां आनंदथी रहे छे ।
तेनी पासेथी रात्रीनी सर्व हकीकत लग्न करावी राजाए घणी सामग्री
अन्यदा औदत्त शेठे व्यापारनुं काम पूर्ण करीने स्वदेश जवानी तैयारीनी जाण जिनदत्तने करी । राजानी अनुमति मेळवी श्रीमतीने साधे लईने, जिनदो औदत्त शेठनी साथै स्वदेश जवा माटे प्रयाण कर्यु
ज्यारे समुद्रमां अर्धा मार्गे वहाण पहोंच्यु त्यारे श्रीमतीना रूप तथा विपुल द्रव्यने जोईने रागांध तथा लोभां औदत्त शेठे, मध्य रात्रीना समये कपटथी जिनदत्तने समुद्रमां फेंकी दीधे ।

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