Book Title: Jindutta Kathanakam
Author(s): Omkarshreeji
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 19
________________ प्रस्तावना " 'जो कोई देवनी सहाय मळे तो हुँ घरना स्वामिनी गेरहाजरीमां घरनो धणी थई शकु' एम विचारीने धूते ते नगरमां आवेला साक्षात् सहाय करनार यक्षना मंदिरमा ण लांघण करीने, यक्षने प्रत्यक्ष कर्यो । यक्षे कह्य-शा माटे लांघण करे छे ? धूर्ते कह्यु-मने हापाशेठना जेवा ज रूपवाळो करो। यक्षे कह्यु-हु आवं अनुचित कार्य नहीं करु', मारा मंदिरमांथी नीकळी जा । 'पुनः धूर्ते चार लांघण करी त्यारे यक्षे विचार्यु के-जो आ धूर्त लांघणो करीने मरी जशे तो मारी पूजा-मान्यता कोई नहीं करे, अने मारुं स्थान निष्फल थशे । आम विचारीने यक्षे धूर्तनुं हापाशेठना जेवू रूप बनाव्यु । " हवे धूर्त, हापाशेठना घरे गयो त्यारे नोकरोए अने बन्ने शेठाणीओए आगन्तुकने हापाशेठ मानीने तेने विनय पूर्वक आवकार आप्यो । "गृहस्वामी बनेला धूत हापाशेठे नोकरो, मुनिम अने बे शेठाणीओनी समक्ष जणाव्यु के-मने देशांतरमां मुनिए दान अने भोग माटे लक्ष्मीनो उपयोग करवानो उपदेश आप्यो तेथी अने एक मोटा श्रीमंतने समुद्रमा वहाण साथे डूबेलो सांभळोने में संकल्प कर्या के 'जो हु सुखरूप घरे पहचु तो मारु अने अन्यनु वांछित पूरीश'। "त्यार पछी बन्ने स्त्रीओने सुंदर आभूषण अने वस्त्रो पहेराव्यां, नोकरोने पण घणी सामग्री आपीने धूर्त हापाशेठ प्रतिदिन सुंदर भोजन वगेरेने। उपभोग करे छे । उपरांत दानशाला वगेरे द्वारा अनेक जनोने दान आपे छे, धार्मिक कार्यामां पण द्रव्यव्यय करे छे अने बन्ने स्त्रीओ साथे आनंदप्रमोदथी विलसे छे । "केटलाक दिवसो पछी असल हापो शेठ परदेशथी रात्रीना समये पोताना घरे आवे छे त्यारे पहेरेगिरे कधु-शेठ तो घरमां छे, तु धूत छे । आथी आखी रात बहार हीने प्रभाते असल हापाशेठे घरमां जोयु तो पोताना जेवीज आकृतिवाळो पुरुष हिंडोळा उपर बेठेलो हतो। आथी अत्यंत व्यथित थईने असल हापाशेठे राजानी समक्ष फरियाद करी । "राजाए धूत हापाशेठने बोलाव्यो । बन्नेनी आकृति संपूर्ण मळती जोईने निर्णय करवो अशक्य जाणीने राजा अने प्रधानोए एकमत थईने 'हापाशेठनी पत्नोओ जेने स्वीकारे ते साचो हापाशेठ' एम निर्णय करीने बन्ने शेठाणीओने राजसभामा बोलावी । घरमांथी नीकळीने मार्गमा बन्ने शेवाणीओए निर्णय कये के-असल शेठ तो जेणे फरियाद करी छे ते छे, पण एवा कृपणनी साथे जीवीने भव बाळवा करतां नवा हापाशेठने ज स्वीकारखो । राजसभामां आवीने बन्ने शेठाणीओए धूत हापाशेठने पति तरीके स्वीकार्यो । आथी विलाप करता असल हापाशेठने धक्का मारीने बहार काढवामां आवे छे । आ जोईने धूर्त हापाशेठने अत्यन्त दया आवे छे अने ते पुनः राजानी समक्ष आवी, अभय मागीने, पोतानी धूर्तता प्रकट करी असल हापाशेठने साचो ठरावे छे । आथी बन्ने स्त्रीओनी अत्यन्त अपकीर्ति थाय छे । "धूते जतां जतां असल हापाशेठने कह्य-हवेथी दान आपजे, भोगवजे, छता वैभवे वधारे संचय करीश नहीं, छतां पण जो सचय करीश तो हे हापा ! हुं फरी पाछो आवीश' । ___ आ दृष्टांत सांभळीने सौ कोई विमलमतीनी प्रशंसा करे छे । आ समयमा राजाना मदोन्मत्त हाथीए आलानस्तभ तोडीने समग्र नगरमां हाहाकार मचाव्यो छे । ज्यारे कोईथी पण हाथो काबूमां न आव्यो त्यारे राजाए जाहेर कराव्यु के-जे कोई आ हाथीने वश करशे तेने राजा अधु राज्य अने मदनमंजरी नामनी राजकन्या आपशे । ज्यारे आ काम करवा कोई पण तैयार न थयु त्यारे वामनरूपधारी जिनदत्ते ते स्वीकारीने युक्ति-प्रयुक्ति आदिथी हाथीने वश को ।

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