Book Title: Jindutta Kathanakam
Author(s): Omkarshreeji
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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प्रस्तावना
पोताना पतिने समुद्रमां पडेलो जाणीने विलाप करती श्रीमतीए औदत्त शेठने वा तात ! पुत्रने समुद्रमा छोडीने कथां जशा ? वहाणने केम थोभावता नथी ? औदत्त शेठे जणान्यु के जिनदत्त मारो पुत्र नथी, पण नोकर छे, हवे तुं मारी गृहस्वामिनी था । आथी श्रीमतीए पोताना शीलधर्मनी आण आपीने वहाणने हूववा माटे शाप आप्यो, तेथी वहाण डोलवा मांडयुं । भयभीत थयेला औदत्त शेठे पाताना दुष्कृत्य बदल श्रीमतीनी क्षमा मागी अने वहाणमां बेठेला सर्व माणसोनी विनंतिथी श्रीमतीए वहाणने स्पर्श करीने डूबतु बचाव्यं ।
अन्यदा वायुवेगे चालतु वहाण कोईक द्वीप आगळ पच्यु । त्यां पोतानो सर्व सामान लईने श्रीमती जुदी पडी, अने औदत्त शेठ पोताना नगर तरफ रवाना थयो ।
सिंहलद्वीपमां श्रीमतीनी समक्ष जिनदत्ते पोतानो पूर्व वृत्तान्त कद्देलो तेनुं स्मरण थतां श्रीमती, विमलमतोनी पासे रहेवा माटे चंगनगरी गई । सौ प्रथम जिनमंदिरमां दर्शन करवा गयेली श्रीमतीए जिनदत्तनुं नाम बोलीने पण पुनः वंदन कर्यु । आथी त्यां आवेली विमलमतीए जिनदत्तनुं नाम सांभळीने श्रीमतीने पूछ्थुं–बहेन तु' कोनुं नाम बोली ? श्रीमतीए पोतानो सपूर्ण वृत्तांत जणावीने विमलमतीनो परीचय पूछतां विभलमतीए जणाव्यु के तु जेने मळवा आवी छे ते हु पोते ज छु ।
श्रीमती अने विमलमती, विमलशेठना त्यां रहे छे । धर्मक्रिया एवं साध्वीजी पासे धर्मश्रवण करतां बन्नेए दीक्षा लेवानो विचार कर्यो त्यारे विमलशेठे बार वर्ष सुधी प्रतीक्षा करवा जणाव्यु
विद्याधरीपरिणयन
समुद्रपतन पछी जिनदत्तने एक काष्ठ हाथमां आवे छे तेना आधारे ते समुद्र तरी रहयो छे । आ समयमा रत्नपुरीना विद्याधर नामना राजा अने अशोकश्री नामनी राणीनी विद्याधरी नामनी युवान पुत्री, 'जे कोई पुरुष समुद्र तरीने बहार आवे तेने ज परणु, अन्यथा नहीं' आ प्रमाणे प्रतिज्ञा करे छे । आथी राजाए पोताना अनुचरोने सतत तपास करवा माटे समुदना कांठा उपर राख्या छे ।
एक दिवसे काष्ठना आधारे तरतो तरतो जिनदत्त समुद्रनाकांठा से पांच्यो ज्यां विद्याधर राजाना अनुचरो हाजर हता । राजपुरुषोए जिनदत्तने आदर पूर्वक बोलावीने, साथै लईने, राजाने वधामणी आपी । विद्याधर राजाए, महोत्सव पूर्वक जिनदत्तने बोलावीने, विनयादि गुणोथी तेनुं कुलीनत्व जाणीने, राजकुमारीने जणाव्यु के-तारी प्रतिज्ञा आज पूर्ण थाय छे। राजकुमारीए पण जिनदत्तने जोईने, तेनी साथ लग्न करवानो पोतानो निर्णय जणाव्यो ।
'मारा पिता इच्छित वस्तु मागवानुं जणावे ते समये हाथी-घोडा वगेरे पैकी कंइ मागवु नहीं, पण तेमनी पासे १६ विद्याओ अने मनश्चितित विमान छे तेनी मागणी करवी', आ प्रमाणे चौरीमां बेठेली राजकुमारीए गुप्त रीते जिनदत्तने संकेत कर्यो । थोडा समय पछी कन्याना पिता विद्याधर राजाए जिनदत्तने क - जे इच्छा होय ते माग़ो । जिनदत्ते १६ विद्याओ अने मनश्चितित विमाननी मागणी करी । " मारी पुत्रीए ज आ हकीकत जिनदत्तने जणावेली होवी जोईए, वळी जिनदत्त योग्य अधिकारी पण छे' एम विद्याधर राजाए जिनदत्तने १६ विद्याओ, मनश्चितितविमान अने घणी वस्तुओ दायजामां पण आपी ।
विचारीने
वामनरूपधारी जिनदन्तनी विविध चर्या
रत्नपुरीमां आनंद-प्रमोदथी जिन्सदना दिवसो पसार थता हता । एक दिवस जिनदत्तने पोतानी प्रथम पत्नी विमलमती याद आवी । आथी चिंतातुर जिनदत्तने विद्याधरीए चिंतानुं कारण पूछतां जिनदसे साची

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