Book Title: Jindutta Kathanakam
Author(s): Omkarshreeji
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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प्रस्तावना
सौभाग्यलतापरिणयन
पोतानुं वृद्धत्व अने अपुत्रत्व विचारीने अरिमर्दन गजाए, राज्य सहित पोतानी सौभाग्यलता नामनी पुत्र'नो स्वकार करवा जिनदत्तने समजावीने, सुमुहर्ते सौभाग्यलतानु लग्न जिनदत्तनी साथे करावीने समग्र राज्य जिनदत्तने सेप्यु।
बीजा दिवसे प्रभातमां उद्यानपालके अरिमर्दन राजाने जणाव्यु'--नगर बहारना उद्यानमां श्री धर्मघोषसूरि नामना गुरु पधार्या छ । आथी उद्यानपालकने आजीवन निर्वाह योग्य दान आपीने, अरिमर्दन, जिनदत्त अने नगरजनोनी साथ उद्यानमा गुरु महाराजनी पसे जाय छे । गुरुनो उपदेश सांभळीने अरिमर्दन राजा, जीवराज शेठ अने जिनश्री शेठाणीए दीक्षा लीधी तथा जिनदत्त राजाए गृहस्थधर्मनां बार व्रत अंगीकर्या ।
जिनदत्ते वर्मतपुर नगरमां बहोतेर देवकुलिकाथी शोभायमान अने एकसो आठ मंडपवाळु राजविहार नामर्नु विशाल जिनमंदिर बनाव्यु (अही जिनमंदिरनु अने विविध प्रकारे जिनपूजाफलनुं विस्तारथी वर्णन छे), तथा शास्त्रग्रंथो लखावीने ज्ञानभंडारन निर्माण कयु । (अहीं शास्त्रग्रंथो लखाववा, श्री संघभक्ति, सप्तक्षेत्रद्रव्यव्यय वगेरे वगेरे जिनदत्तनां धर्मकृत्यो जणाव्यां छे) ।
केवलज्ञानप्राप्ति
अन्यदा विचरता विचरता अरिमर्दनमुनि, जीवदेव मुनि वगेरे महर्षिओ वसंतपुरमा आवीने अल्प समय रही अन्यत्र विहार करे छे । केटलाक समय पछी 'उक्त मुनिओ अनशनव्रत लईने दिवंगत थया' आवा समाचार कोई प्रवासीए जिनदत्तने कह्या । आ सांभळीने जिनदत्तराजाए, प्रधानोनी समक्ष पोतानो दीक्षा लेबानो निर्णय जणाव्यो । (अहीं प्रधानकथित युक्तिपूर्वक दीक्षाग्रहणनिषेधनुं अने जिनदत्तकथित दीक्षाग्रहणविषयक शास्त्रीय विधानद् विस्तारथी वर्णन छे) । छेवटे स्वय प्रव्रजित थवा माटे जिनदत्तराजा महेलमाथी बहार नीकळे छे, पाछळ परिवार, प्रधानो अने नगरजना छ । आगळ चालतां पोते बनावेला जिनमंदिरमां देववंदन करवा माटे जिनदत्तराजा जाय छे । देववंदन करता करतां, वीतरागत्वनी भावना भावतां भावतां तथाप्रकारना शुभाध्यवसायनी परंपरखुद्धिथा जिनदत्तने जिनमंदिरमा ज केवलज्ञान थाय छे । देवताओए मुनिवेष आप्या पछी श्री जिनदत्तकेवलोए धर्मदेशना आपी।
जिनदत्तना पूर्वभवनी कथा
धम देशनानी समाप्ति पछी 'आपना पूर्वभवन स्वरूप जणाववा कृपा करो' आ प्रकारनी सभाजनोनी विनंतिथी श्री जिनदत्तकेवलीए नीचे प्रमाणे तेमनो पूर्वभव कह्यो--
दक्षिणार्ध भरतना अवंती देशमा उदायननृपे वसावेल विक्रमवर्मनृपशासित दशपुर नामर्नु नगर छे । ते नगरमा शिवधन नामने। वणिक रहे छे, तेने यशोमती नामनी पत्नी अने शिवदेव नामनो पुत्र छ ।
एकदा शिरोवेदनाथी शिवधननु मृत्यु थाय छे । समयान्तरे संपत्ति पण क्षीण थवाथी पुत्र शिवदेवने साथे लईने यशोमती उज्जयिनी नगरीमा एक सारा गृहस्थना त्यां घरकाम करवा माटे रहे छे, अने शिवदेव, ते गृहस्थनां पशुओ चराववाचें काम करे छ।
आ रीते समय जतां एक दिवस वगडामां एक तपस्वी मुनिने जोईने, शिवदेव, वंदन करीने तेमनी सेवा करे छे । आ रीते केटलाक दिवस व्यतीत थया पछी माघीपूर्णिमाना तहेवारना दिवसे अन्यान्य स्त्रीओए यशोमतीना घरे विविध खाद्य वानगीओ आपी । ज्यारे शिवदेव जमवा माटे तैयारी करे छे त्यारे त्यां आहार

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