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प्र. ३-श्रीमहावीरस्वामी दीक्षा लेके जब प्रथम विहार करने लगेथे तिस अवसरमें शकईश्ने श्रीमहावीरजीको क्या बिनती करीश्री.
न.-शकशने कहाकि हे नगवन् तुमारे पूर्व जन्मोंके बहुत असाता वेदनीयादि कग्नि कमोके बंधनहै तिनके प्रत्नावसे आपकों बद्मस्वावस्गमें बहुत नारी उपसर्ग होवेंगे जेकर आपकी अनुमति होवे तो मैं तुमारे साथही साथ रहुं और तुमारे सर्व नपसर्ग टालु अर्थात् दूर करूं.
प्र. ४४-तब श्रीमहावीरजीने को क्या नत्तर दीनाथा.
न-तब श्रीमहावीरजीने इंकों ऐसे कहा के हे ६ यह वात कदापि अतीत काल में नही हुईहै अबन्नी नहीहै और अनागत कालमे नी नही होवेगी के किसीनी देवें असुरेशदिके साहाय्यसे तीर्थंकर कर्मक्षय करके केवलज्ञान न. त्पन्न करतेहै; किंतु सर्व तीर्थंकर अपने ५ प्राकमसें केवलज्ञान नत्पन्न करतेहै इस वास्ते हमनी दूसरेकी साहाय्य विना अपनेही प्राक्रमसें केवल
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