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स्यार्थः ॥ जैनमतके विना अन्य मतके असमंजस वचनरूप शास्त्र जो जगमें यशको पावें है जैन से वचनोसें वे सर्व वचन तेरे स्याद्वादरूप महोदधि के अमंद विंडु नमके गए हुए है, इत्यादि सैकमो चार वेद वेदांगादिके पाठीयोनें जैनमतमे दीक्षा लीनी है, क्या उन सर्व पंमितोकों बौद्धायनादि शास्त्र पकते हुआको नही मालुम पका होगा के बौधायनादि शास्त्र जैनमतके वचनोसें रचे गये है, वा जैन मत बौधायनादि शास्त्रोंसें रचा गया है, जेकर कोई यह अनुमान करके श्री महावीरजीसें बौधायनादि शास्त्र पहिले रचे गए है, इस वास्ते जैनमत पीछेसे हुआ है, यह माननानो ठीक नहो, क्योंकि श्री महावीरजीसें २५० वर्ष पहिले श्री पार्श्वनाथजी और तिनसें पहिले श्री नेमिना यादि तीर्थकर हुएहै, तिनके वचन लेके बौधाय नादि शास्त्र रचे गए है, जैनी ऐसें मानते है; जेक र कोई ऐसें मानता होवे कि जैनमत थोमा है और ब्राह्मण मत बहुत है, इस वास्ते थोमे मतसें बमा मत रचा क्यों कर सिद्ध होवे; यह अनुमान अ
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