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१०ए तरंगसें नक्तीवाला जीव चंचगोत्र बांधे, श्न पू. ोक्त गुणोसे विपरीत गुणवाला अर्थात् मत्सरी १ जात्यादि आठ मद सहित अहंकारके नदयसें किसीको पढावें नही, सिइ प्रवचन अरिहंत चैत्यादिककी निंदा करे, नक्ति न होवे, सो जीव हीन जाति नीच गोत्र बांधे ॥ इति गोत्रकर्म ७,
___ अथ आठमा अंतराय कर्मका स्वरूप लिख तेहै, तिसके पांच नेदहै. जिस कर्मके नदयसे जीव शुक्ष वस्तु आहारादिकके हूएनी दान देनेकी इबानी करे, परंतु दे नही सके, सो दानांतराय कर्म १ जिस कर्मके नदयसे देनेवालेके हुए. नीशष्ट वस्तु याचनेसेंनी न पावे. व्यापारादिमें चतुरनी होवे तोनी नफा न मिले, सो लान्नांतराय कर्म जिस कर्मके नदयसे एक वार नोग ने योग्य फूलमाला मोदकादिकके हूएनो लोग न कर सके, सोनोगांतराय कर्म ३ जिस कर्मके नदयसें जो वस्तु बहुत वार नोगनेमें आवे, स्त्री आनर्ण वस्त्रादि तिनके हूएनी वारंवार लोग न कर सके, सो नपन्नोगांतराय कर्म । जिस कर्म
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