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१ए४ बुद्धिके प्रन्नावसे वांचके प्रगट करे है, और अंग्रेजी पुस्तकोंमें गपके प्रसिध्द करेहै तिन जूने से खोंसे निसंदेह सिह होताहै कि, श्री महावीरजी से लेके श्री देवगिणिक्षमाश्रमण तक जैन श्वेतांबर मतके आचार्य कंगन ज्ञान रखने में बहुत नद्यमी और आत्मज्ञानी थे, इस वास्ते हम जैन मतवाले पूर्वोक्त यूरोपीयन विद्वानोका बहुत नुपकार मानते है, और मुंबइ समाचार पत्रवाला नी तिन लेखोंकों बांचके अपने संवत् १ए४४ के वर्षाके चार मासके एक प्रतिदिन प्रगट होते पत्रमें लिखताहै कि, जैनमतका कल्पसूत्र कितनेक लोक कल्पित मानते थे, परंतु इन लेखोंसें जैन मतका कल्पसूत्र सबा सिह होता है.
प्र. १५७-व लेख कौनसेंहै, जिनका जिकर आप ऊपले प्रश्नोत्तरमें लिख आए है, और तिन लेखोंसें तुमारा पूर्वोक्त कथन क्योंकर सिह होता है.
न.-वे लेख जैसे मातर बूलर साहिबने सुधारके लिखे और जैसे हमकों गुजराती ना
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