________________
२१४ लिख दिखलाते है॥ जैनमतके वाचक १ दिवाकर २ दमाश्रमण ३ यह तीनो पदके नाम जो आचार्य ग्यारे अंग, और पूर्वोके पढे हुएथे ति. नकों देने में आतेथे, जैसे नमास्वातिवाचक १ सिइसेन दिवाकर ए देवर्किगणिक्षमाश्रमण ३; इस वास्ते मथुरांके शिला लेखोंमें जो वाचकके नामसे आचार्य लिखे है, वे सर्व इग्यारे अंग और पूर्वोके कंगन ज्ञानवाले थे, और सुस्थित नामे आचार्यका नाम जो बूलरसाहिबने लिखाहै तो सुस्थित नामे आचार्य विरात् तीसरे सकेमे हुआ है, तिससे कोटिक यणकी स्थापना हुश्है, और जो वश्री शाखा लिखी है सो विरात् ५०५ वर्षे स्वर्ग गये, वनस्वामीसें स्थापन हुश्थी वरी शा खाके विना जो कुल और शाखाके आचार्य स्थापनेवाले सुस्थित आचार्यके लगनग कालमें हुए संलव होतेहै, इन लेखोंकों देखके हम अपने ना दिगंबरोंसें यह विनतो करते है कि जरा मतका पक्षपात गेमके इन लेखोंकी तर्फ जरा ख्याल करोके श्न लेखोंमें लीखे हुए गण, कुल शाखाके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com