Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 257
________________ २४१ रना ऐसा त्याम है, और चौर यार खूनी असत्य नापी आदिक अन्याय करनेवालेतो राजाके अ. पराधी है, इस वास्ले तिनके यथार्थ दंग देनेसें जैन धर्मी राजाका प्रथम व्रत जंग नहीं होताहै, इसी तरे अपने अपराधि राजाके साथ लमा करनेसे नी व्रत जंग नहीं होताहै. चेटक महाराज संप्र ति कुमारपालादिवत्, और जैनधर्मी राजे बारांबतरूप गृहस्थका धर्म बहुत अली तरेसे पालते थे, जैसे राजा कुमारपालने पाले. म. १६२-कुमारपाल राजाने बारांव्रत किस तरेंके करे, और पाखे थे. न.-श्री कुमारपाल राजाके श्री सम्यक्त मूल बारांव्रत पालनके थे॥ त्रिकाल जिन पूजा. १ अष्टमी चतुर्दशीमें पोषधोपवासके पारणेमें जो देखने में कोई पुरुष आया तिसको यथार्थ वृत्ति दान देकर संतोष करना और जो कुमारपालके साथ पोषध करते थे तिनको अपने आवासमें पारणा करानां ३ टूटे हुए साधर्मिकका नक्षर क रनां, एक हजार दोनार देना । एक वर्ष में साध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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