Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 259
________________ २४३ तमे सपराधी विना मारो ऐसे शब्दके कहने से एक उपवास करनां १ दूसरे व्रतमे नूलसे जूठ बोला जावे तो प्राचाम्लादि तप करनां २ तीसरे व्रतमें निसंतान मरेका धन नही लेनां ३ चौथे व्रत में जैनी हुआ पीछे विवाह करणेका त्याग और चौमासेके चार मास त्रिधा शील पालनां, मनसें नंगे एक उपवास करनां, वचनसें नंगे एकाचाम्ल, काय से जंगे एकाशन. एक परनारी सहोदर बिरुद धरनां. नोपलदेवी आदि आठों राणोचोंके मरे पीछे प्रधानादिकों के आग्रहसेंनी विवाह करनां नही, ऐसा नियम जंग नही करा. आरात्रिकार्थ सोनेमय नोपलदेवीकी मूर्त्ति करवाई, श्री हेमचंश्सूरिजीए वासक्षेप पूर्वक राजर्षि बिरुद दीना ४ पांचमे वृतमें ब करोमका सोना, आठ करोमका रूपा, हजार तुला प्रमाण महर्घ्य मणिरत्न, बत्तीस हजारमण घृत, बत्तीस हजारम हम तेल, लक्षा शालि चने, जुवार, मूंग प्रमुख धान्योके मूंढक रस्के पांच लाख ५००००० अश्व, पांच हजार ५०००, हाथी, पांचसौ ५०० ऊंट, घर, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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