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२३॥ तायोंकी तारराधक यति धर्मवाले जानने, तिनकों ताम्यतासे शाजघन्य सौधर्म देवलोकके सुखरूप फ दि मानोके लहै. आराधिक श्रावक धर्मवालेसें अ क्रीमाकरनेके धिक और बारा कल्प देवलोक, नव नंदन वनादिवेयकादि मध्यम सुख और नत्कमेंनी राजा-टतो अनुत्तर विमानके सुख संसारिके वनवत् जक और संसारातीत मोक्ष फल देतेहै, घन्य,मध्यम,इस वास्ते ते यह धर्म सर्व शक्तिसे उत्तमवृत हो उत्तरोत्तर अधिक अधिक आराधना तेहै,सर्व शतु चाहिये, यह सर्व धर्मासें नत्तम धर्महै, के फलवान यह कथन नपदेश रत्नाकरसे किंचित् वृदोंके होने-लिखाहै ॥ से और देवताके प्रत्नावसे सर्व रोग विषादि दूर करे. मनचिं तित रूप करण जरा प.
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