________________
लित नाशक इत्यादि बहु प्रनाववाली उषधीयां पत्र फलादिकरके संयुक्तहै, पिबले सर्व व. नोस यह प्रधान वन है। इति पाचमा धर्म नेद ॥५॥
प्र. १६१-जो जैनमतमें राजे जैनधर्मी होते होवेंगे, वे जैनधर्म क्योंकर पाल सक्ते होवें. गे, क्योंकि जैनधर्म राज्यधर्मका विरोधी हमकों मालुम होताहै.
न-गृहस्थावस्थाका जैनधर्म राज्यधर्म (रा ज्यनीति) का विरोधी नही है. क्योंकि राज्यधर्म चौर यार खूनी असत्यनाषो प्रमुखाको कायदे मू जब दंग देनाहै. इस राज्यनीतिका जैनराजाके प्रथम स्थूल जीवहिंसा रूप व्रतका विरोध नही है, क्योंकि प्रथम व्रतमें निरपराधिकों नही मा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com