________________
२३५ निष्टके जन-पाप) अनुष्टान, तप, नियम दानादि कन्नीहोतेहै। अन्यायसे व्योपार्जन करी कुपात्रदा और कितने-नादि वेरो खेजमीवत् किंचित् राज्या क किंपाका-दि असार शुन्न फल उर्खन बोधिपदि का हीन जातित्व परिणाम विरसादि मुख मीठे प-अनर्थन। देवेहै, कौणिक पिबले न. रिणाम नवमें तपस्वीवत् और जैनमति नाम राम लामिथ्यादृष्टो सुसढादि देव गतिमें गए देवानमिबहुल संसारी हूए, वे जो मिथ्या ननेकन तप करनेमें तत्पर हुए होए,श्सी नंगमें
जानने ॥३॥ कितनेक किंपाकादिको
तर असत् आग्रह देव गुरुके प्रत्यनीनिःसारशुन
कादि नाव वाले तथाविध तपोनुष्टा
शुल नादि करके एकवार स्वर्गादि फल देके फसवाल कनबहल संसार तिर्यच नरकादिके उख टकादिक अ-देनेवाले होतेहै, गौशालक, जमालि नावसे अन-आदिवत् ॥॥ तथा कितनेक नश्ता र्थ जनकनही व विशेष पात्र गुणादि परिज्ञान रहि है। कितनेकात दान पूजादि मिथ्यात्वके रागसें नारिंग, जंबी करतेहै, वे उंबरादिवत् किंचित् राज्य
व्वा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com