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र, करस्मादि | मनुष्य के जोग समय्यादि असार शुन मध्यम फला फल ही देते है, दूसरेके नपरोधसें दान के वृक्ष है, परं देनेवाले सुंदर वालीयेकीतरें जैनधर्मा तु अनर्थ ज-श्रित जी निदान सहीत प्रविधिसें नक नहीं है ६ तप अनुष्टान दानादि करनेवाले जी कितनेक रा- इसी जंग में जान लेने, चंड, सूर्य वहु यण ( खिर-पुत्रिकादिके दृष्टां । जान लेने ॥ ५ ॥ सी) प्रांब, कितनेक तापसादिधर्मी बहुत पाप र प्रियंगु प्रमु· हित तपोनुष्टान कंदमूल फलादि सख सरस शु-चित्त जोजन करनेवाले अल्प तपवाले न पुष्प फल नारंग, जंबीर, करणादि तरुवत् ज्यो वाले है, ये तिषि नवनपत्यादि बि मध्यम देवर्द्धि सर्व मालकी फलदायी है. श्री वीर पिबले नवों में रहित जानने परिव्राजक पूर्ण तापसवत् तथा जैन 9 ऐसें तार-मति सरोस गोरव प्रमाद संयमीश्रा तम्यतासें यदि मंसुकी वध करनेवाले रूपक मुनि घम, मध्यम, मंगु आचार्यादिवत् ॥ ६ ॥ कितनेक उत्तम वृक्षों- तामलि कृषिको तरें नम्र तप करनेकी विचित्र वाले चरक परिव्राजकादि धर्मवाले
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