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२१७ तप गलादि गोंका मानो, और स्वकपोल क. ल्पित बावीस २२ टोलेका पंथ और तेरापंथीयों का मत बगेम देवो, यह हित शिक्षा मैं आपकों अपने प्रिय बंधव मानके लिखीहै ।
प्र. १५७-हमारे सुनने में ऐसा आयाहैकि जैनमतमें जो प्रमाण अंगुल (नरत चक्रीका अंगुल) सो नत्सेधांगुल (महावीरस्वामिका आधाअंगुल) से चारसौ गुणा अधिकहै, इस वास्ते नत्सेधांगुलके योजनसें प्रमाणांगुलका योजन चारसौ गुणा अधिकहै, ऐसे प्रमाण योजनसे श षन्नदेवकी विनोता नगरी लांबी बारां योजन और चौमी नव योजन प्रमाणथी जब इन योजनाके नत्सेज्ञांगुलके प्रमाणसे कोस करीये, तब १५००० चौद हजार चारसो कोस विनीता चौडो और १५२०० कोस लंबी सिाह होतोहै, जब एक नग री विनिता इतनी बमी सिह हू, तबतो अमेरि का, अफरीका, रूस, चीन, हिंदुस्थान प्रमुख सर्व देशोंमें एकही नगरी हूर, और कितनेक तो चारसौ गुणेसेंनी संतोष नही पातेहै, तो एक हजार
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