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२२१ अढाइ नत्सेंधांगुल प्रमाण चौमी है, तिससे मापा करा है, यह जैनमतके सिहांतकारोका मत है, परंतु चारसौ तथा एक हजार गुणी नत्सेधांगुल से विनीता, हारकां, द्वीप, सागर, विमान, पर्वतोका मापा करनां यह जेन सिहांत का मत नही हे, यह कथन जिनदास गणि दमाश्रमणजो श्री अनुयोगद्वारकी चूर्मि में लिखते है, तथा च चूर्मिका पाठः जेअपमाणंगुलानपुढवायपमाणापिङति तेअपमाणंगुलविकंनेणाणेयवानपुण सूर अंगुलेणंतिएयंचविवत्तगुणएणकेश्एअस्सजंपु रामिणंतिअन्नेनसूअंगुलमाणेगनसुत्तन्नणियंतं॥ इस पाठको नाषा ॥ जिस प्रमाणांगुलसें पृथ्वी, पर्वत, दीपादिका प्रमाण करीये है सो प्रमाणांगु लका जो विस्कंन (चौमापणा) अढाइ नत्सेध आं गुल प्रमाणसे करना, परंतु सूची आंगुलसें पृथ्वी आदिकका प्रमाण न करना, और कितनेक ऐसें कहते है कि एक प्रमाणांगुलमें एक हजार नत्सेधां गुल मावे, ऐसे प्रमाणांगुलसें मापनां, और अन्य आचार्य ऐसें कहता है कि नत्सेधांगुलसें चारसौ
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