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२३० इति आठमा गुरु स्वरूप नेद ॥ ७ ॥ इनमेसें उपदेश सुनने योग्यायोग्य
कौन है. इन आगेही नांगोमें जो नंग क्रिया रहित (संयमरहित) है वे सर्व त्यागने योग्य है, और जो नंग सम्यक् क्रिया सहित है वे आदरने योग्य है, परंतु तिनमें नो जो उपदेश विकल नंगहै वे स्वतारकन्नी है, तोनी परकों नही तारसक्ते है, और जे नंग अशुःोपदेशक है. वेतो अपनेकों और श्रोताको संसार समुश्में मबोनेही वाले है, इस वास्ते सर्वथा त्यागने योग्य है, और शुद्धोप देशक, क्रियावान पद कोकिलाके दृष्टांत सूचित अंगीकार करने योग्य है, त्रीक योगवाला पद तोतेके दृष्टांत सूचित सर्वसें नत्तमहै । और शुभ प्ररूपक पासबादि चारोंके पास नपदेश सुनना नी शुइ गुरुके अन्नावसे अपवादमें सम्मत है.
प्र. १६०-इस जगतमें धर्म कितने प्रकारके और कैसी उपमासें जानने चाहिये.
न. इस प्रश्रोत्तरका स्वरूप नीचे लिखे
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