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२१२ बखतमें जैन पंथकी बहुत मुदत हुआं चलती आत्मज्ञानोकी हयाती हो चुकीश्री (कितनेही का लसें कंगन ज्ञानवान् मुनियोकि परंपरायसें संतति चलो आतीथी) तिस संततिमें साधु लोक तिस वखतमें अपने पंथकी वृद्धिकी बहुत हुस्या रीसं प्रवृत्ति राखतेथे, और तिस कालसें पहिलेनो राखी होनी चाहिये, जेकर तिनोमें वाचक सेतो यहनो संन्नवितहैके कितनेक पुस्तक वंचा ने सीखाने वास्ते बराबर रीतीसें मुकरर करा हुआ संप्रदाय तथा धर्म सबंधी शास्त्रनी था. क स्पसूत्रके साथ मिलनेसें येह लेखों श्वेतांबरमतकी दंत कथाका एक बड़ा नागकों (श्वेतांबरके शास्त्रके बड़े नागकों) बनावटके शक (कलंक) से मुक्त करते है, (श्वेताबर शास्त्रके बहुत हिस्से बनावटके नही है किंतु असली सच्चे है) और स्थिविरावलिके जिस नाग ऊपर हालमे हम अ ख्तियार चला सक्ते है, सो नाग निःकेवल जैनके श्वेतांबर शाखाकी वृश्किा नरोसा राखने ला यक दवाल तिसमें हयाती साबित कर देता है,
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