________________
२०२
वो. इ. पत्र-२५३ मेमें मध्यम शाखा विषयक हकीकतन्नो पूर्वोक्तही सूचन करतीहै, यह कल्प सूत्र अपनेकों एसे जनाताहैकि सुस्थित और तु. प्रतिबुधका दूसरा शिष्य प्रीयग्रंथ स्थविर मध्यमा शाखा स्थापन करोथो, हमकों इन लेखोपरसे मा लुम होताहैके प्रोफेसर जेकूबीका करा हुआ गण, कुल तथा शाखायोको संज्ञाका खुलासा खराहै, और प्रथम संज्ञा शाला बतातोहै, दूसरी आचार्यों की पंक्ति और तोजो पंक्तिमेंसे अलग हो गश्, शाखा बतावेहै, तिससे ऐसा सिह होता है, कल्प सूत्रमें गण (गड) तथा कुल जणाया विना जो शाखायोंका नाम लिखताहै, सो शाखा इस कपरल्ये पिरले गणके ताबेकी होनी चाहिये, और तिसको उत्पत्ति तिस गछके एक कुलमेंसे हुश हो चाहिये, इस वास्ते मध्यम शाखा निसंदेह कौटिक गछमें समाइ हुश्थी, और तिसके एक कुलमेंसें फटी हुइ वांकी शाखाथी के जिसके बी चका चौथा कुल प्रश्नवाहनक अर्थात् पणहवाह गय कहलाताहै, इस अनुमानकी सत्यता करने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com