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संन्नवित शब्दहै, और संस्कृत प्रति वर्मिकके दर्शक दाखल प्रीतिवर्मनका साधिक शब्द तक्षित मिणतीमें करीएतोनी मैं ऐसे मानताहूंके यह यथार्थ नकलको खामो ऊपर तथा ध और व की बीचमें निजीकके मिलते हुए कपर विचार करतां, सो बदलाके पेतिधमिक होना चाहिये, वांच
में दूसरी नूल यह आचार्यके नाममें जहां ह के ऊपर ए-मात है सो असली पिडले व अ. करके पेटेंकी है, इस नामका पहिला नाग अवस्य रेहे नही था, परंतु रोह था के जो रोह गुप्त, रोहसेन और अन्य शब्दोंमें मालुम पड़ता है. दूसरी पंक्तिमें थोमासाही सुधारनेका है, जो प्रपा यह अदर शुभ होवें और तिनका शब्द बनता होवे, तबटो अर्पणकरा हुआ पदार्थ एक पाणी पीनेका गम होना चाहिये, अब में नीचे लिखे मुजब थोमासा बीचमें प्रवेप करना सूचन करताई ॥ स ४७ अरमि २० एतस्ये पुरवाये चारपोगणे पेतीधमीक कुलवाचकस्य, रोहनदीस्य, सिसरय, सेनस्य, निवतनं सावक. दर........
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