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लुम होता है ॥ ६ एक आगेके गणका तथा तिसके एक कुलके नामोंका अपभ्रंसरूप नंबर १० वाला चित्र चौदवमें १४ मालुम होता है, जहां यथार्थ नकल नीचे लिखे प्रमाणे वांचने में आती है ॥ पंक्ति पहिली ॥ स 10+ ग्रमो २० एतासय पुरवायेवरणेगतीपेतावमीकाकुलवचकस्य रेहेनदीस्यलासस्यसेनस्यनीवतनंसावकद ॥ पंक्ति दूसरी ॥ पशानवधयगोह.. ग. न....प्रपा.. ना.. मात.... ॥ मैं निसंदेह कहताहूंके गती नूलसें वांचनेमें आया है, और सो खरेखरा गणे है, जेकर इसतरे होवेतो वरणेनो इस सरीषाही शब्द चारणेके बदले नूलसें वांचने में आया होना चाहिये, क्योंकि यह गण जो कल्पसूत्र एस. वी.इ. वाल्युम पत्रे श्ए१ प्रमाणे प्रार्य सुदस्तिका पांच मा शिष्य श्री गुप्तसे स्थापन हुआथा, तिसका दूसरा कुल प्रीतिर्मिक है, (पत्रे. श्ए) यह स हजसे मालुम होता हैकि, यह नाम पेतिवमिक कुखके आचार्यका संयुक्त नाम पेतिबमिक कुल वाचकस्यमें गुप्त रहा हूआ है. जोके पेतिवमिक
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