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वाला राजशेखर अपने रचे प्रबंध कोशमें जो कोश तिनोंमें विक्रम संवत् १४०५ में रचा है, तिसकी समाप्तिमें अपनी धर्म संबंधी नलाद वि कि लिखो हुइ हकीकतसें साबूत होती है, सो अपनेकों जनाता है कि मै कोटिक गए प्रश्नवा हन कुल मध्यम शाखा हर्षपुरीय ग और मल धारी संतान, जो मलधारी नाम अजयदेवसूरिकों विरद मिला था, तिसमेंसे हुं ॥ १, २, के पिब ले शब्दोंको सुधारे करनेमें में समर्थ नहीहुं, परं तु इतना तो कह सक्ताहुंके यह बक्षीस स्तंनोकी लिखी हुई मालुम होतो है, ५, कोटिय गए अंत नंबर 2 में लिखा हुआ मालुम होताहै, जहां १, १, को २ दूसरी तर्फको यथार्थ नकल नोचे प्रमाणे वंचातीहै, सि६ = स ५ हे १ दी १०+२ अस्य पुरवाये कोटो.... सर ए. कनिंगहामकी लोनी हुइ नकल से मैं पिबले शब्द सुधार सक्ताहूं, सो ऐसें अस्यापुरवा कोट (य) मालुम होता है, परंतु टकारके ऊपरका स्वर स्पष्ट मालुम नही होता है, और यकारके वामे तर्फका स्थान थोमासाही मा
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