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२०७ म है, दूसरा महावीरास्येकी जगें महावीरस्य धरना चाहिये, दूसरी पंक्तिमें पूर्व वयाके बदले पूर्ववाये गणके बदले गणतो, काकुलवके बदले काकुलतो टे के बदले पेतपुत्रिकातो, और गणस्यके बदले गणिस्य वांचनेकी जरुरीयात हरेक कोश्कों प्रगट मालुम पमेगो, नामोके सबंधमें अर्य-रेहनीय अशक्य रूपहै, परंतु जेकर अपने ऐसे मानीयेके हको ऊपर का असल खरेखरा पिछले चिन्हके पेटेका है, तद पोडे सो अर्यरोहनिय (आर्य रोहनके ताबेका) अथवा आर्य रोदनने स्थाप्या हुआ, अर्थात् संस्कृतमें आर्य रो दण होता है, इस नामका आचार्य जैन दंत कथामें अहीतरे प्रसिः है, कल्पसूत्र एस. वी. इ. पत्र श्ए१ में लिखे मूजब सो आर्य सुहस्तिका पहिला शिष्य था, और तिसने नद्देह गण स्थाप न करा था. इस गणकी चार शाखा और बकुल हुएथे, तिसकी चौथी शाखाका नाम पूर्म पत्रि. का मुख्यकरके तिसके विस्तारकी बाबतमें इस लेखके नाम पेतपुत्रिकाके साथ मायें मिलता प्रा
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