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१५ पातरमे नाषांतर कर्त्ताने दीयेहै तैसेंही लिखतेहै, येह पूर्वोक्त लेख सर ए. कनिंगहामकें आचिनलोजिकल (प्राचीन कालकी रही हु वस्तुयों स बंधी) रिपोर्टका पुस्तक ८ आठमेमें चित्र १३१५ तेरमे चौदवें तक प्रगट करे हुए मथुरांके शिला लेख तिनमें केवल जैन साधुयोंका संप्रदाय आचार्योंकी पंक्तियां तथा शाखायों लिखी हुश्है, के वल इतनाहो नही लिखा हुआहै, किंतु कल्पसु. त्रमें जे नवगण (गड) तथा कुल तथा शाखायों कहीहै, सोन्नी लिखी हुश्है, इन लेखोंमे जो संवत् लिखा हुआ है, सो हिंदुस्थान और सीधीया देशके वीचके राजा कनिश्क १ हविश्क २ और वासुदेव ३ इनके समयके संवत् लिखे हुएहै और अब तक इन संवतोकी शरुआत निश्चित नही हुहै, तोनी यह निश्चय कह सकते है कि येह हिंऽस्थान और सोथीया देशके राजायोंका राज्य इसवीसनके प्रथम सैकके अंतसें और दूसरे सैके के पहिले पौणेनागसे कम नही ठरा सक्तेहै, क्यों कि कनिश्क सन शवीसनके ७८ वा उए मे व
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