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२०० के नदयसे मिथ्या मतको किया न कर सके, सो बालवीर्यातराय कर्म १ जिसके नुदयसे सम्यग्रह ष्टी, देश वृत्ति धर्मादि क्रिया न कर सके, सो बाल पंमित वीयांतराय कर्म, जिसके नुदयसे सम्यम् दृष्टी साधु मोक्ष मार्गकी संपूर्ण क्रिया न कर सके, सो पंमित वीयाँतराय कर्म, अथ अंतराय कर्मके बंध हेतु लिखतेहै. श्री जिन प्रतिमाकी पुजाका निषेध करे, उत्सूत्रकी प्ररूपणा करे, अन्य जीवां को कुमार्गमें प्रवर्गवे, हिंसादिक आगरह पाप सेवनेमें तत्पर होवे तथा अन्य जीवांकों दान ला नादिकका अंतराय करे, सो जीव अंतराय कर्म बांधे. इति अंतराय कर्म ८.
इस तरें आठ कर्मकी एकसो अमतालीस १४ कर्म प्रकृतिके नदयसे जीवोंके शरीरादिककी विचित्र रचना होतीहै, जैसें आहारके खाने से शरीरमै जैसे जैसें रंग और प्रमाण संयुक्त हाम, नशा, जाल,आंखके पमदे मस्तकके विचित्र अवयबपणे तिस आहारका रस परिणमता है, यह सर्व कर्माके उदयसे शरीरकी सामर्थ्यसें होता
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