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११ है, परंतु यहां ईश्वर नही कुबन्नी कर्ताहै, तैसेंही काल १ स्वन्नाव नियति ३ कर्म । नद्यम ५ इन पांचो कारणोंसें जगतकी विचित्र रचना हो रहीहै. जेकर ईश्वर वादी लोक श्न पूर्वोक्त पांचो के समवायको नाम ईश्वर कहते होवे, तब तो हमन्नी ऐसे ईश्वरकों का मानतेहै. इसके सिवाय अन्य को कर्ता नहीहै, जेकर कोइ कहे जै नीयोंने स्वकपोल कल्पनासें कर्माके नेद बना र. खेहै. यह कहना महा मिथ्याहै, क्योंकि कार्यानु मानसें जो जैनीयोने कर्मके नेद मानेहै वे सर्व सिड होतेहै, और पूर्वोक्त सर्व कर्मके नेद सर्वज्ञ वीतरागने प्रत्यक्ष केवल ज्ञानसें देखेहै. इन कमौके सिवाय जगतकी विचित्र रचना कदापि नही सि होवेगी, इस वास्ते सुज्ञ लोकोको अरिहंत प्रणीत मत अंगीकार करना उचितहै, और ईश्वर वीतराग सर्वज्ञ किसी प्रमाणसेंनी जगतका कर्त्ता सिह नही होताहै, जिसका स्वरूप ऊपर लिख आये है.
प्र. १५५-जैन मतके ग्रंथ श्री महावीर
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