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१७१ पीले होवे, सो पीतवर्ण नामकर्म ४३ जिस कर्म के नदयसे जोवका शरीर तथा शरीरके अवयव संख स्फटिक समान नुज्वल होवे, सो शुक्लवर्ण नामकर्म ४० जिसके नदयसे जीवके शरीर तथा शरीरके अवयव सुरलि गंध अर्थात् कपूर, कस्तू री, फूल सरोखी सुगंधी होवे, सो सुरनीगंध ना मकर्म ४५ जिस कर्मके नदयसें जीवके शरीर तथा शरीरके अवयव पुरनिगंध लशुन मृतक श रीर सरीखी पुरत्नोगंध होवे, सो पुरनिगंध ना. मकर्म ४६ जिसके नदयतें जीवका शरीर तथा शरीरके अवयव नींब चिरायते सरोसा रस होवे, सो तिक्तरस नामकर्म ७ जिसके नदयसें जीव का शरीरादि सूंठ, मरिचकी तरे कटुक होवे, सो कटुकरस नामकर्म ४८ जिसके नदयसें जी वका शरीरादि हरम, बहेमें समान कसायलारस होवे, सो कसायरस नामकर्म ४९ जिस कर्मके नदयसे जोवके शरीरादिका रस लिंबू , आम्लो सरीखा खट्टा रस होवे, सो खट्टारस नामकर्म ५० जिस कर्मके नुदयसें जीवके शरीरादि खांझ, सा
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