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१५७ से अनादि नित्यहै, और पर्याय रूप करके अनित्यहै, और यें जम चैतन्य अनंत स्वनाविक शक्तिवाले है, वे अनंत शक्तियां अपने कालादि निमित्तांके मिलनेसें प्रगट होतीहै, और इस जगतमें जो रचना पीने इश्है, और जो हो रहीहै, और जो होवेगी, सर्व पांच निमित्त नपादान का रणोंसें होतीहै, वे कारण येहहै, काल १ स्वन्नाव २ नियति ३ कर्म ४ उद्यम ५; इन पांचोके सिवाय अन्य कोई इस जगतका कर्त्ता और नियंता ईश्वर किसी प्रमाणसे सिइ नही होताहै, तिसकी सिझीका खंकन पूर्व पहिले सब लिख
आएहै, जैसे एक बीजमें अनंत शक्तियांहै, वृदमे जितने रंग विरंगे मूल १ कंद २ स्कंध ३ त्वचा ४ शाखा ५ प्रवाल ६ पत्र ७ पुष्प - फल ए बीज १० प्रमुख विचित्र रचना मालुम होतीहै, सो सर्व बीजमें शक्ति रूपसे रहतीहै, जब कोई वीजको जालके नस्म करे तब तिस बिजके परमाणुयोमें पूर्वोक्त सर्व शक्तियां रहताहै, परंतु बिना निमित्तके एकभी शक्ति प्रगट नही होतीहै,
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