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१५७ नेत्रांकी शक्तिकों आवरण करे सो चकुदर्शनावर गीय कर्मका नेदहै; इसके क्षयोपशमकी विचित्रतासें आंखवाले जीवोंकी आंखद्वारा विचित्र त रेकी दृष्टि प्रवर्ने है, इसके कयोपशम होने में विचित्र प्रकारके निमित्त है, इति चकुदर्शनावरणी य १. नेत्र वर्जके शेष चारों इंडियोको अचकु द र्शन कहते है, तिनके सुनने, सूंघने, रस लेने, स्पर्श पिडाननेका जो सामान्य ज्ञानहै सो अचा दर्शनहै; चारो इंडियोंकी शक्तिका आगदन करने वाला जो कर्म है तिसको अचकु दर्शन कहते है, इसके कयोपशम होने में अंतरंग बहिरंग विचित्र प्रकारके निमित्तहै, तिन निमित्तोंझारा इस कर्मका क्षय नपशम जैसा जैसा जीवांके होता है तैसी तैसी जोवोंको चार इंख्यिकी स्व स्व विषयमें शक्ति प्रगट होती है, इति अचकुदर्शनावरणी २. अवधि दर्शनावरणीय, और केवलदर्शना वरणीयका स्वरूप शास्त्रसें देख लेनां; क्योंकि सामग्रीके अन्नावसे ये दोनो दर्शन इस कालकेत्रके जीवांकों नही है, एवं दर्शनावरणीयके चार
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