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१६५ ष्टानुष्टानसे मोक्ष प्ररूपे तथा एकांत नयॐ निःके वल ज्ञान मात्रसे मोद कहे ऐसेही एकले विनयादिकसे मोद कहै १ मार्ग अर्थात् अर्हत नाषित सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्ररूप मोद मार्ग तिसमे प्रवर्त्तनेवाले जीवकों कुहेतु, कुयुक्ति, करके पूर्वोक्त मार्गसे भ्रष्ट करे २ देवद्रव्य ज्ञान इ. व्यादिक तिनमें जो नगवानके मंदिर प्रतिमादि के काम आवे काष्ट, पाषाण, मृतीकादिक तथा तिस देहरादिके निमित्त करा हुआ रूपा, सोनादि धन तिसका हरण करे; देहराकी जुमि प्रमु. खकों अपनी कर लेवे, देवको वस्तुसे व्यापारक रके अपनी आजीवीका करे तथा देवव्यका नाश करे, शक्तिके हुए देवश्यके नाश करनेवालेको हटावे नही, ये पूर्वोक्त काम करनेवाला मिथ्याह ष्टि होताहै, सो मिथ्यात्व मोहनीय कर्मका बंध करता है; तथा दूसरा हेतु तीर्थकर केवलोके अवर्णवाद बोले, निंदा करे तथा नले साधुकी तथा जिन प्रतिमाकी निंदा करे तथा चतुर्विध संघ साधु साधवी श्रावक श्राविकाका समुदाय तिस
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