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शुभ वा अशुभ तैसी गतिमें जोव तिस कर्मके नदयसें जा रहता है, इस वास्ते जो अज्ञानीयोने कल्पना कर रस्की है कि पापी जीवकों यम और धर्मी जोवकों स्वर्गके दूत मरा पीछे ले जा ते तथा जबराइल फिरस्ता जीवांकों ले जाता है, सो सर्व मिथ्या कल्पना है, क्योंकि जब यम और स्वर्गीय दूत फिरस्ते मरते होगे, तब तिनकों कौन ले जाता होवेंगा, और जीवतो जगतमें एक साथ अनंते मरते और जन्मते, तिन सबके लेजाने वास्ते इतने यम कहांसे आते होवेंगे, और इतने फिरस्ते कहां रहते होवेगे १ और जीव इस स्थूल शरीरसें निकला पीछे किसीकेजी हाथमें नही आता है, इस वास्ते पूर्वोक्त कल्पना जिनोंने सर्वज्ञका शास्त्र नही सुना है तिन अज्ञानी योंने करीहै. इस वास्ते मुख्य आयुकर्म और गतिनाम कर्मके उदयसेंही जीव परज्जवमें जाता है. इति ग तिनाम कर्म 8 अथ जातिनाम कर्मका स्वरूप लिखते है, जिसके उदयसें जीव पृथ्वी, पाणी, अनि, पवन, वनस्पतिरूप एकेंश्यि, स्पर्शेश्यिवा
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