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१६० साता वेदनीयसे शरीरकों अपने निमित्तधारा सुख होताहै; और असाता वेदनीयके नदयसे सुख प्राप्त होता है. एवं दो नेदोंके बांधनेके कारण प्रथम साता वेदनीयके बंध करणेके कारण गुरु अर्थात् अपने माता पिता धर्माचार्य इनकी नक्ति सेवा करे १ दमा अपने सामर्थके हुए दूसरायोंका अपराध सहन करना २ परजीवांकों पुखी देखके तिनके मुख मेटनेकी वांग करे ३ पंचमहाव्रत अनुव्रत निर्दूषण पाले ४ दश विध चक्रवाल समा चारी संयम योग पालनेसें ५ क्रोध, मान, माया, लोन, हास्प, रति अरति, शोक, नय, जुगुप्सा इनके नदय आया इनको निष्फल करे ६ सुपात्र दान, अन्नय दान, देता सर्व जीवां नपर नपकार करे सर्व जीवांका हित चिंतन करे ७ धर्ममें स्थिर रहे, मरणांत कष्टकेनी आये, धर्मसें चलायमान न होवे, बाल वृक्ष रोगीकी वैयावृत्त करतां धर्ममें प्रवर्त्ततां सहाय करे, चैत्य जिन प्रतिमाकी अली नक्ति करतां सराग संयम पाले देशनतीपणा पाले, अकाम निर्जरा अज्ञान तप करें, सौच्य स
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