________________
१५५
श्रुतज्ञानावरण श्रुतज्ञानका आबरण श्रुतज्ञान, तिसकों कहतेहै, जो गुरु पासों सुनके ज्ञान होवे और जिसके बलसें अन्य जीवांकों कथन करा जावे, तिसके निमित्त पूर्वोक्त मति ज्ञानवाले जा नने, क्योंके ये दोनो ज्ञान एक साथही नत्पन्न होतेहै; परं इतना विशेषहै; मतिज्ञान वर्तमान विषयिक होता है, और श्रुतझान त्रिकाल विषय होताहै; श्रुतज्ञानके चौदह १४ तथा वीस नेदश्व है, तिनका स्वरूप कर्मग्रंथसे जानना. पठन पा उनादि जो अक्षरमय वस्तुका ज्ञानहै, सो सर्व श्रुतज्ञानहै, तिसका आवरण आगदन जो है, जिसकी तारतम्यतासे श्रुतज्ञान जीवांकों विचित्र प्र कारका होताहै, तिसका नाम श्रुतज्ञानावरणीय है. इसके दायोपशमके वेही निमित्त है, जौनसें मतिज्ञानके है; इति श्रुतज्ञानावरण २. तीसरा अवधिज्ञानका आवरण अवधिज्ञानावरणीय ३. ऐसेंही मनःपर्यायज्ञानावरण ४. केवलझानावरण ५, इन पांचों ज्ञानोमेंसे पिडले तीन ज्ञान इस कालके जीवांकों नहोहै; सामग्री और साधनके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com