________________
का नावार्थ ऊपर लिख आएहै, दूसरे श्लोकका नाबार्थ यह है, कि समुझे सर्व नदीयां समा सक्तो है, परंतु समुश् किसीनी एक नदीमें नही समा सक्ता है, तैसे सर्व मत नदीयां समान है, वैतो सर्व स्याहाद समुद्ररूप तेरे मतमे समा सक्ते है, परंतु तेरा स्याहाद समुप मत किसी मतमेंनी संपूर्ण नही समा सक्ता है, ऐसेही श्री ह रिजइसूरिजी जो जातिके ब्राह्मण और चित्रकूटके राजाके प्रोहित थे और वेद वेदांगादि चौदह विद्याके पारगामी थे, तिनोनें जैनकी दीक्षा लेके १४४४ ग्रंथ रचेहै, तिनोनेनो ऊपदेशपद षोमश कादि प्रकरणोमें सिइसेन दिवाकरकी तरेही लि खाहै तथा श्री जिनधर्मी हुआ पोडे जानाहै, जि सने शैवादि सकल दर्शन और वेदादि सर्व मतों के शास्त्र ऐसे पंमित धनपालने जोके नोजराजा की सन्नामें मुख्य पंमित था, तिसने श्री कृषनदेवकी स्तुतिमें कहाहै, पावंति जसं असमंजसावि, वयणेहिं जेहि पर समया, तुह समय महो अहिणो, ते मंदाविउ निस्संदा ॥१॥ अ.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com