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तोत कालकी अपेक्षाए कसा मानना ठीक नही, क्योंकि इस हिंस्तानमें बुके जीते हुए बुद्धमत विस्तारवंत नही था, परंतु पीसे ऐसा फैलाके ब्राह्मणोका मत बहुतही तुब रह गया था; इसी तरे कोइ मत किसी कालमे अधिक हो जाता है, और किसी कालमे न्यून हो जाता है, इस वास्ते योमा और बमा मत देखके यो मतको बमेसे रचा मानना ये अनुमान सच्चा नही है, जट्ट मो दमूलरने यह जो अनुमान करके अपने पुस्तकमें लिखाहै कि वेदोंके बंदोनाग और मंत्रनागके रचेकों श्ए० वा ३१०० सौ वर्ष हुएहै, तो फेर बौज्ञयनादि शास्त्र बहुत पुराने रचे हुए क्यों कर सि होवेंगे, इस वास्ते अपने मनकल्पित अनु. मानसें जो कल्पना करनी सो सर्व सत्य नही हो शक्ती है, इस वास्ते अन्य मतोंमे जो ज्ञानहै सो सर्व जैन मतमें है, परंतु जैनमतका जो ज्ञानहै सो किसी मतमे सर्व नही है; इस वास्ते जैन मतके वादशांगोकेही किंचित वचन लेके लोकोने मनकल्पित उसमें कुछ अधिक मिलाके मत रच
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