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१२० त्रने श्री महावीरके चरितानुसारी बुद्धको सर्वसें ऊंचा करके कथन करा सिह होताहै, इस वास्ते जैनमतवाले बुके धर्मकों सर्वज्ञका कथन करा हुआ नही मानते है.
प्र. १४३-कितनेक यूरोपीयन विद्वान ऐसे कहतेहै कि जैन मत ब्राह्मणोंके मतमेसें लीयाहै, अर्थात् ब्राह्मणोके शास्त्रोकी बातां लेके जैन मत रचा है ?
न-यूरोपीयन विज्ञानोने जैनमतके सर्व पुस्तक वांचे नहीं मालुम होतेहै, क्योंकि जेकर ब्राह्मणोके मतमें अधिक ज्ञान होवे, और जैनमतमें तिसके साथ मिलता थोमासा ज्ञान होवे, तब तो हमनी जैनमत ब्राह्मणोके मतसें रचा ऐसा मान लेवे, परंतु जैनमतका ज्ञानतो ब्राह्मणादि सर्व मतोके पुस्तकोंसे अधिक और विलक्षणहै, क्योंकि जैनमतके बेद पुस्तक और कर्मा के स्वरूप कथन करनेवाले कर्म प्रकृति, १ पंच संग्रह, २ षट्कर्म ग्रंथादि पुस्तकों में जैसा ज्ञान कथन करा है, तैसा ज्ञान सर्व ऽनियाके मतके
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