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जिस जगो कोरटा नामें आजके काल में गाम वसता है. तहांनी श्रीमहावीरजीकी प्रतिमा मंदिरकी श्रीरत्नप्रन सूरिजीकी प्रतिष्टा करी हु अब विद्यमान कालमें सो मंदिर खमाहै, तथा नसवाल और श्रीमालि जो बणिये लोकों में श्रावक झाति प्रसिद्ध है, वेनी प्रथम श्रीरत्नप्रन्न सूरिजोनेही स्थापन करीहै, तथा श्रीपार्श्वनाथजी १७, सत्तरमें पट्ट ऊपर श्री यकदेव सूरि हुए है, वो. रात् ५५ वर्षे जिनोने बारा वर्षीय कालमें वज्जस्वामीके शिष्य वज्रसेनके परलोक हुए पीने तिनके चार मुख्य शिष्य जिनकों वज्रसेनजीने सोपारक पट्टणमें दीक्षा दीनी थी, तिनके नामसे चार शाखा तथा कुल स्थापन करे, वे यहैं; नागें १, चं २, निवृत्त ३ विद्याधर ४. यह चारों कुल जैन मतमें प्रसि-है; तिनमेंसे नागेंद्र कुलमें उदयप्रन मल्लिषेणमूरि प्रमुख और चंकुल में बम गछ, तप गड, खरसर गछ, पूर्मवल्लीय गन, देवचंद्रसूरि कुमारपालका प्रतिबोधक श्रीहेमचंसूरि प्रमुख प्राचार्य हुए है. तथा निवृत्तकुलमें श्रो
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