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शंसय करना चाहिये, जैसे क्या जाने मेरो सातमो पेमोका पुरुष आगे हुआहैके नही. इस तरेका जो संशय को विवेक विकल करे तिसकों सर्व बुद्धिमान् नन्मत्त कहेंगे. इसी तरें श्रीपार्श्वनायकी पट्ट परंपरायके विद्यमान जो पुरुष श्री पार्श्वनाथ २३ तेवीसमें तीर्थंकरके होनेमे नही करे अथवा संशय करे तिसकोंनी प्रेक्षावंत पुरुष उन्मत्तोही पंक्तिमे समझते है, तथा धूर्त पुरुष जो काम करताहै सो अपने किसी संसारिक सुखके वास्ते करता है. परंतु सर्व संसारिक इश्यि जन्य सुखसे रहित केवल महा कष्ट रूप परंपराय नही चला सक्ताहै, इस वास्ते जैनधर्मका संप्रदाय धूर्त्तका चलया हुआ नही, किंतु अष्टादश दूषण रहित अर्हतका चलाया हुआहै.
प्र. ०१ कितनेक यूरोपीअन पंमित प्रोफेसर ए. वेबर साहिबादि मनमे ऐसी कल्पना करते हैं कि जैन मतकी रीती बुध धर्मके पुस्तकोंके अनुसारे खमी करीहै, प्रोफेसर वेबर ऐसेंनी मा. नतहै कि, बौध धर्मके कितने साधु बुधकों नाक
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