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१०१ चाहिये, जिससे आत्मा बने, ऐसा तो आत्मासे पहिला कोश्नी नपादान कारण नहीहै; इस वा. स्ते आत्मा अनादि अनंत अविनाशी वस्तु है.
प्र. १०५-जेकर कोइ ऐसे कहे प्रात्माका नपादान कारण ईश्वरहै, तबतौ तुम आत्माकों अनित्य मानोगेके नही.
न.-जब ईश्वर आत्माका नपादान कारण मानोगे, तबतो ईश्वर और सर्व अनंत संसारी आत्मा एकहो हो जावेगी, क्योंकि कार्य अपणे नपादान कारणसें निन्न नही होता है.
प्र. १०६-ईश्वर और सर्व संसारी आत्मा एकही सि होवेगेतो इसमे क्या हानि है ? ।
न.-ईश्वर और सर्व संसारी आत्मा एकही सिह होवेगे तो नरक तिर्यचकी गतिमेनी ईश्वरही जावेगा, और धर्मा धर्मनी सर्व ईश्वरहीं क. रनेवाला और चौर, यार, लुच्चा, लफंगा, अगम्यगामी इत्यादि सर्व कामका कर्त्ता ईश्वरही सिः होवेगा, तबतो वेदपुराण, बैबल, कुरान प्रमुख शास्त्रनो ईश्वरने अपनेही प्रतिबोध वास्ते रचे
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