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आहारए लद्धी श्व चनदह पूर्वधर मुनि तीर्थकरकी शहि देखने वास्ते, १ वा कोई अर्थ अवगाहन करने वास्ते, अथवा अपना संशय दूर करने वास्ते अपने शरीरमें हाथ प्रमाण स्फटिक समान पूतला काढके तीर्थंकरके पास नेजताहै, तिस पूतलेसें अपने कृत्य करके पाग शरीरमें संहार लेताहै, तिसकों आहारक लब्धि कहतेहै.
सीयलेसा लही २५ तपके प्रत्नावसे मु. निकों ऐसी शक्ति नुत्पन्न होतोहैके जिससे तेजो लेश्याकी ननताको रोक देवे, वस्तुकों दग्ध न होने देवे, तिसकों शोतलेशा लब्धि कहते है.
वेनविदेह लदी २६ जिसकी सामर्थसे अ णुकी तरे सूक्ष्म कण मात्रमें हो जावे, मेरुकी तरें नारी देह कर लेवे, अर्क तूलकी तरें लघु ह लका देह कर लेवे, एक वस्त्रमेंसें वस्त्र करोगों पार एक घटमेंसें घट करोमों करके दिखला देवे, जैसा श्छे तैसा रूप कर सके, अधिक अन्य क्या कहिये, तिसका नाम वैक्रिय लब्धि है.
अरकीपमहापसी लो २७-जिसके प्रना
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