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प्र. ११५-क्या कलंक लगताहै ?
न.-अन्यायता, निर्दयता असमर्थता अझानतादि.
प्र. ११५-अन्यायता दूषण ईश्वरको पुन्य पापके फल देनेसे कैसे लगताहै ?
न.-जब एक आदमीने तलवारादिसें किसी पुरुषका मस्तक बेदा, तब मस्तकके बिदने. से नस पुरुषकों जो महा पीमा नोगनी पमीहै, सो फल ईश्वरने दूसरे पुरुषके हायसें नसका मस्तक कटवाके भुक्ताया, तद पी तिस मारने वालेकों फांसी आदिकसे मरवाके तिसकों तिस शिर बेदन रूप अपराधका फल भुक्ताया, ईश्वरने पहिला तिसका शिर कटवाया, पीछे तिसकों फांसी देके तिस शिर छेदनेका फल नुक्ताया; ऐसे काम करनेसे ईश्वर अन्यायी सिद्ध होताहै.
प्र, ११६--पुन्य पापके फल नुक्तानेसे ई. श्वरमें निर्दयता क्यों कर सिद्ध होतोहै :
न.-जब ईश्वर कितने जोवांकों महा पु. खी करताहै, तब निर्दयी सिद्ध होताहै. शास्त्रों
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