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११६ त्रोकों अलग अलग जान सके तिसको संन्निन्न श्रोत्र लब्धि कहतेहै, यह साधुको होवे है.
नहिनाण लही -अवधिज्ञानवंतको अव. धिज्ञान लब्धि होती है, यह चारो गतिके जीवांको होतीहै, विशेष करके साधुकों होतीहै.
रिनम लद्धी --जिस मनः पर्यायज्ञानसे सामान्य मात्र जाणे, जैसे इस जीवने मनमें घट चिंतन कराहै इतनाही जाणे, परंतु ऐसा न जा नेकि वैसा घट किस क्षेत्रका नत्पन्न हुआ किस कालमें नत्पन्न हुआहै, अथवा अढाइ दीपके मनु ष्योके मनके बादर परिणामा जाणे तिसकों जु मति लब्धि कहते है, यह निश्चय साधुकों होती है अन्यको नही.
विनलमा लद्धी ए-जिस मनः पर्यायसे झजुमतिसे अधिक विशेष जाणे, जैसे इसने सों नेका घट चिंतन कराहैः पामलिपुत्रका नुत्पन्न हूआ वसंतझतुका अथवा अढाइ दीपके संझी जी वांके मनके सूक्ष्म पर्यायांकोंना जाणे, तिसकों विपुलमति लब्धि कहतेहै, इसका स्वामी साधुही
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